scriptसरकार की गिरती साख | The reputation of government is falling | Patrika News
ओपिनियन

सरकार की गिरती साख

लगता तो नहीं कि राममंदिर वाली काठ की हांडी एक बार फिर चुनावी चूल्हे पर चढ़ सकेगी। लेकिन अगर ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे पर सत्ता में आई सरकार की अग्नि परीक्षा विकास नहीं, राम मंदिर के सवाल पर होती है, तो सिर्फ बीजेपी ही नहीं, पूरा देश ही रामभरोसे है…

Nov 02, 2018 / 02:33 pm

dilip chaturvedi

government reputation

government reputation

योगेन्द्र यादव, विश्लेषक

कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तिनका नहीं, बल्कि 182 मीटर की प्रतिमा बनवाई। लेकिन लगता है चारों दिशाओं से संकट में घिरी मोदी सरकार के लिए यह सहारा भी नाकाफी साबित होगा। पिछले साल भर में मोदी सरकार की साख अप्रत्याशित रूप से गिरी है। महीने भर में ही सीबीआई, रिजर्व बैंक और सुप्रीम कोर्ट के घटनाक्रम ने सरकार की परेशानी को अचानक एक संकट में बदल दिया है।

इस संकट की बुनियाद में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की घोर असफलता है। इधर डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता जा रहा है, उधर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते जा रहे हैं। सेंसेक्स गिर रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है। देशव्यापी सूखे के चलते आने वाले महीनों में खाद्यान्न और फल-सब्जी में महंगाई की आशंका बन रही है।

इस मुसीबत के लिए कोई और नहीं, खुद सरकार जिम्मेदार है। तीन साल तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता रहते भविष्य निधि न बनाने और फिर नोटबंदी-जीएसटी के चलते सरकार की जेब खाली है और यही रिजर्व बैंक से सरकार की तनातनी की असली वजह है। चुनाव से पहले सरकार का खजाना खाली है। अरुण जेटली चाहते हैं कि रिजर्व बैंक तिजोरी तोड़कर एक मोटी रकम सरकार की झोली में डाल दे और नियम-कायदे छोड़कर बैंकों को खुले हाथ से पूंजीपतियों को कर्ज बांटने दे। नोटबंदी के प्रयोग में सरकार का मोहरा बन साख गवां चुके गवर्नर उर्जित पटेल अब और तोहमत झेलने के लिए तैयार नहीं हैं। जब सत्ता के खासमखास लोग भी किसी काम से इनकार कर दें, तो समझिए मामला गड़बड़ है।

सीबीआइ में हुआ बवाल भी इसी की एक मिसाल है। इसे आलोक वर्मा बनाम राकेश अस्थाना विवाद के रूप में देखना बचकाना होगा। यह मामला सीबीआइ बनाम प्रधानमंत्री कार्यालय का है। याद रहे कि आलोक वर्मा, मोदी सरकार की पसंद से नियुक्त किए गए थे जिसका विरोध भी हुआ था। मोदी सरकार को इतना भरोसा तो रहा ही होगा कि वे ‘एडजस्ट’ कर लेंगे। जरूर पानी नाक के ऊपर पहुंच गया होगा, तभी उर्जित पटेल की तरह आलोक वर्मा को भी खड़े होना पड़ा।

चुनाव से पहले मोदी सरकार को सीबीआइ की सख्त जरूरत थी द्ग नीतीश कुमार को सृजन घोटाले के दाग से मुक्त करने के बाद अपने साथ बनाए रखने के लिए, बिहार में लालू प्रसाद यादव को राजनीतिक धक्का पहुंचाने के लिए, मायावती को धमकाने और बसपा को कांग्रेस के साथ जाने से रोकने के लिए, आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी से समझौते की गुंजाइश के लिए और तमिलनाडु की सरकार को अपनी जेब में रखने के लिए। लेकिन अब सरकार का खेल बिगड़ता नजर आ रहा है।

एक संभावना यह है कि सुप्रीम कोर्ट आलोक वर्मा को सीबीआइ निदेशक के पद पर बहाल कर दे। तब उनके पास ढाई महीने होंगे और सामने होंगी सरकार व खुद प्रधानमंत्री के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की फाइलें। रही-सही कसर रफाल मामले पर सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम आदेश ने पूरी कर दी है। कांग्रेस राज के भ्रष्टाचार से तंग आई जनता जिस चेहरे को बेदाग मानती थी, रफाल सौदे में अनिल अंबानी को 30 हजार करोड़ रुपए तक का फायदा पहुंचाने के आरोप ने उस चेहरे की चमक धुंधली कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब तय है कि जिन कागजों को सरकार छुपाना चाहती थी वे सार्वजनिक होंगे। तब देश सुप्रीम कोर्ट और जनता का फैसला भी देखेगा।
चारों ओर से घिरी और घबराई बीजेपी अब अपना ब्रह्मास्त्र निकाल रही है। अमित शाह राजस्थान में बांग्लादेशी टिड्डियों को ढूंढ रहे हैं और केरल में सुप्रीम कोर्ट को ललकार रहे हैं। असम के नागरिकता रजिस्टर को बंगाल, त्रिपुरा और उन सब जगह ले जाने की बात हो रही है जहां-जहां इस बहाने हिंदू-मुस्लिम तनाव पैदा किया जा सके। भारत की नागरिकता को धार्मिक आधार पर परिभाषित करने वाला कानून संसद में पास करवाने की कोशिश होगी। चौंकिएगा नहीं, अगर आने वाले कुछ महीनों में या तो जवान और किसान, नहीं तो हिंदू और मुसलमान हो जाए।

अयोध्या में राममंदिर का निर्माण इसी राजनीतिक पैंतरे की तार्किक परिणति होगा। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले की सुनवाई को टालकर बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। फिर भी यह संभव है कि सरकार संसद में इस आशय का कानून लाने की कोशिश करे। योगी आदित्यनाथ और संघ परिवार के पैरोकारों के बयानों से तो यही संभावना बन रही है।

लगता तो नहीं कि राममंदिर वाली काठ की हांडी एक बार फिर चुनावी चूल्हे पर चढ़ सकेगी। लेकिन अगर ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे पर सत्ता में आई सरकार की अग्नि परीक्षा विकास नहीं, राममंदिर के सवाल पर होती है, तो सिर्फ बीजेपी ही नहीं, पूरा देश ही रामभरोसे है!

(स्वराज इंडिया के अध्यक्ष। लंबे समय सीएसडीएस से संबद्ध रहे हैं।)

Home / Prime / Opinion / सरकार की गिरती साख

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो