बचपन से लेकर आज तक पहला अक्षर हाथ पकड़कर स्लेट पर पेंसिल से लिखना तुमने सिखाया। मैं हमेशा जिद करके बैठ जाती आज जाने नहीं दूंगी तो उस छोटे सोफे पर ही एक करवट सोते रहते मगर मेरी नींद नहीं टूटने देते। मैं जिद करती ये मेंहदी तो रचती ही नहीं कोई अच्छा सा फूल ही नहीं बनता। तो तुमने पूरा एक परात मेंहदी घुलवाकर मेरे हाथ उसमें डलवा दिये कि अब अच्छा फूल बनेगा। कभी स्कूल से आते रास्ते में मिल गये तो घुमाने ले गये बीच से ही। फक्कड़ जीवन सा ही जाए पुरी जिन्दगी दूसरों के नाम कर दी दो जोड़े से ज्यादा कभी कपड़ा नहीं लिया। ऐसी कोई ईद नहीं गई जब मनचाहा न मिला हो नहीं भी पहुंच पाई तो सम्हाल के रखे रहे जब भी मिले 100-200 रूपये हाथ में रखते बचपन का 10-5-25-50 पैसा कब नोट में बदल गया पता ही नहीं चला मगर चच्चा वही रहे। मुझे साईकिल से घर छोड़ने आते तो थैले भर सिवैंया और सूखे मेवे भरवा लेते। चच्चा कितना दिया तुमने उसका हिसाब इस जन्म में तो क्या कभी मैं लगाउं तो भी गुनाह ही होगा।
नि:स्वार्थ प्यार,स्नेह धर्म जाति से परे। संतों सा जीवन जीते रहे मगर कई बार दुखी हुये तो मुझे इशारों में समझाया भी बेटा वो गलती मत करना जो मैंने की। शादी नहीं की भाइयों परिवार को समर्पित रहे। सादगी इतनी कि दादा की तरह कभी आपके पास भी दो जोड़े से तीसरा जोड़ा कपड़ा नहीं दिखा। चाहे मेरी जनरेशन हो या आज के छोटे बच्चे पूरे मोहल्ले में या आपके दफ्तर के आसपास ऐसा कोई बच्चा शायद ही होगा जिसने तुमसे चीज लेने के लिये पैसे न पाये हों। चच्चा तुमने क्या नहीं सिखाया ?
ममता यादव
– फेस बुक वाल से साभार