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सच्चे अभिभावक ऐसे ही होते हैं, जिन्होंने सिखाया जीवन जीना

बचपन से लेकर आज तक पहला अक्षर हाथ पकड़कर स्लेट पर पेंसिल से लिखना तुमने सिखाया।

जयपुरJun 18, 2018 / 02:58 pm

विकास गुप्ता

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बचपन से लेकर आज तक पहला अक्षर हाथ पकड़कर स्लेट पर पेंसिल से लिखना तुमने सिखाया।

कुछ भी नहीं है तेरा दो गज जमीं है तेरी

मिल जाये वो भी तुझको ये भी नहीं जरूरी

ये गजल मेरे चच्चा सुना करते थे अक्सर। दुनियां में रहकर भी दुनियां से ज्यादा मोह नहीं पाला सिवाय एक ममता के। पता चला मुझे ही याद करते चले गये। मैं इस सच को मानने तैयार नहीं थी मैं कैसे मान सकती हूं चच्चा कि तुम चले गये। माता-पिता ने मुझे जन्म दिया तो तुमने तो गढ़ा था,जीवन जीने लायक बनाया। मैं कैसे भूल सकती हूं कि एक बार मेरा इलाज कराते-कराते पापा हताश हो गये आपने एक साल तक इलाज कराया। मैं सागर आती आप पहले डॉक्टर के यहां पहुंच जाते। मैं जिंदा हूं तुम्हारी वजह से। मैं बस स्टेंड से भोपाल के लिये निकलूं या रेल्वे स्टेशन से एक घंटे पहले ही पहुंच जाते। घर से भले ही कोई न आ पाये मगर तुम जरूर आ जाते। जिस दिन से मोबाइल लिया तुम्हारे पास बस एक ही नंबर रहा वो भी मेरा हमेशा कहते थे बेटा एक ऐसा मोबाइल लेना है जिससे बस इतना काम हो जाये कि तुझसे बात हो जाये। मां-पिता,भाई-बहन सब चूक जाते मगर तुम एक दिन भी नहीं चूके मुझे फोन करके यह पूछने से बेटा कैसी हो,कोई परेशानी तो नहीं। मेरी आवाज से तुम समझ जाते और जोर देकर पूछते तबियत तो ठीक है कैसी मरी-मरी सी बोल रई है। चच्चा जितना तुमने मुझे समझा किसी ने नहीं मेरे सृजनकर्ताओं ने भी नहीं। मैं बिना बताये सागर आ गई और लौट गई और तुम्हें पता चला तो बस इतना ही कहा काय रे बेटा एक बार तो बता देती।

बचपन से लेकर आज तक पहला अक्षर हाथ पकड़कर स्लेट पर पेंसिल से लिखना तुमने सिखाया। मैं हमेशा जिद करके बैठ जाती आज जाने नहीं दूंगी तो उस छोटे सोफे पर ही एक करवट सोते रहते मगर मेरी नींद नहीं टूटने देते। मैं जिद करती ये मेंहदी तो रचती ही नहीं कोई अच्छा सा फूल ही नहीं बनता। तो तुमने पूरा एक परात मेंहदी घुलवाकर मेरे हाथ उसमें डलवा दिये कि अब अच्छा फूल बनेगा। कभी स्कूल से आते रास्ते में मिल गये तो घुमाने ले गये बीच से ही। फक्कड़ जीवन सा ही जाए पुरी जिन्दगी दूसरों के नाम कर दी दो जोड़े से ज्यादा कभी कपड़ा नहीं लिया। ऐसी कोई ईद नहीं गई जब मनचाहा न मिला हो नहीं भी पहुंच पाई तो सम्हाल के रखे रहे जब भी मिले 100-200 रूपये हाथ में रखते बचपन का 10-5-25-50 पैसा कब नोट में बदल गया पता ही नहीं चला मगर चच्चा वही रहे। मुझे साईकिल से घर छोड़ने आते तो थैले भर सिवैंया और सूखे मेवे भरवा लेते। चच्चा कितना दिया तुमने उसका हिसाब इस जन्म में तो क्या कभी मैं लगाउं तो भी गुनाह ही होगा।

नि:स्वार्थ प्यार,स्नेह धर्म जाति से परे। संतों सा जीवन जीते रहे मगर कई बार दुखी हुये तो मुझे इशारों में समझाया भी बेटा वो गलती मत करना जो मैंने की। शादी नहीं की भाइयों परिवार को समर्पित रहे। सादगी इतनी कि दादा की तरह कभी आपके पास भी दो जोड़े से तीसरा जोड़ा कपड़ा नहीं दिखा। चाहे मेरी जनरेशन हो या आज के छोटे बच्चे पूरे मोहल्ले में या आपके दफ्तर के आसपास ऐसा कोई बच्चा शायद ही होगा जिसने तुमसे चीज लेने के लिये पैसे न पाये हों। चच्चा तुमने क्या नहीं सिखाया ?

ममता यादव

– फेस बुक वाल से साभार

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