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धमाकों का दोषी कौन?

संयुक्त राष्ट्र संघ और अमरीका के अलावा तमाम देश लम्बे समय से आतंकवाद
को जड़ से खत्म करने के प्रयासों में जुटे हैं लेकिन आतंकवाद है कि
अलग-अलग देशों में अपनी जड़ें जमाने के कामयाब होता जा रहा है

Mar 22, 2016 / 10:08 pm

शंकर शर्मा

terrorist attack

terrorist attack

लगता है अब वो समय आ गया है जब दुनिया को तय करना होगा कि वो अमन के साथ रहना चाहती है या फिर खौफ के साए में। कहीं बम धमाकों का खौफ तो कहीं आई एस आई एस सरीखे संगठनों के पैर पसारते आतंकवाद का खौफ। बीते एक दशक में आतंकवाद जिस तरह से अपनी जड़ें जमा रहा है उससे तो यही लगता है कि ये काम योजनाबद्घ तरीके से हो रहा है और निपटने की रणनीति किसी के पास नहीं।

हर देश अपने तरीके से आतंकवाद का मुकाबला कर रहा है लेकिन सफलता कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि ईमानदारी से इसका मुकाबला करने की नीयत का ना होना है। मुंबई और पेरिस की तर्ज पर बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स पर हुए आतंककारी हमले मानवता में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। भारत, पाकिस्तान के अलावा पहले अरब देश और अब यूरोपीय देशों का आतंककारियों के निशाने पर आने से ये भी साबित हो गया कि आज दुनिया में कोई देश सुरक्षित नहीं रह गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ और अमरीका के अलावा तमाम देश लम्बे समय से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के प्रयासों में जुटे हैं लेकिन आतंकवाद है कि अलग-अलग देशों में अपनी जड़ें जमाने के कामयाब होता जा रहा है। कहीं एयरपोर्ट पर हमलों में बेगुनाहों का खून बहाया जा रहा है तो कहीं स्कूली बच्चों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। सवाल ये कि ऐसा हो क्यों हो रहा है और इसके लिए असल में दोषी कौन है? दुनिया में शांति नहीं चाहने वाले कुछ लोगों ने मानों आतंकवाद को पेशा बना लिया है। लेकिन दोषी वे भी कम नहीं जो अप्रत्यक्ष रूप से इन आतंककारियों का साथ दे रहे हैं।

सवाल ये कि इन आतंककारियों को घातक हथियार आखिर मिल कहां से रहे हैं? क्या सम्पन्न देशों के माध्यम से इन तक हथियारों का जखीरा नहीं पहुंच रहा। एक तरफ आतंकवाद को कुचलने की बात तो दूसरी तरफ हथियार फैक्ट्रयों से मोटा मुनाफा कमाने का मोह।

लाख टके के सवाल यह भी है कि आतंककारियों को हथियार मिलें ही नहीं तो खून-खराबा हो कैसे? सीधी सी बात है कि मुंह में राम और बगल में छुरी रखने वाले चंद देश मानवता के दुश्मन बनकर आतंककारियों का साथ दे रहे हैं। ऐसे देशों की चिंता सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ भर है।

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