हमारे देश में पुलिस हिरासत में मौत के मामले इसलिए नहीं रुक पा रहे, क्योंकि पुलिस हिरासत में आरोपी को तरह-तरह की प्रताडऩा दी जाती है। इसके कारण से जान माल का खतरा हो जाता है। कई बार तो आरोपी मौत के मुंह में भी चला जाता है। ऐसे मामले रुकने चाहिए।
-सुरेंद्र बिंदल, जयपुर
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संवैधानिक सुरक्षा कवच के बावजूद भी पुलिस हिरासत में मौत के मामले बढ़ते जा रहे हैं। किसी भी व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मृत्यु हो जाती है तो ऐसी मौतों को छुपाया जाता है या पुलिस हिरासत से रिहा होने के बाद व्यक्ति की मृत्यु को दिखाया जाता है। पुलिस के खिलाफ कोई सबूत नहीं होता क्योंकि अपराध पुलिस हिरासत में होता है। जनता मेें अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता की कमी है। सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के दौरान पुलिस के व्यवहार को लेकर नियम निर्धारित किए हैं, पर इन नियमों की धज्जियां उड़ रही है।
-प्रणय सनाढ्य, उदयपुर
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पुलिस की मानसिकता में बदलाव जरूरी
चिकित्सकीय देखभाल का अभाव, पारदर्शिता की कमी और उत्पीडऩ के कारण पुलिस हिरासत में मौत के मामले रुक ही नहीं रहे हंै। इस तरह के मामले रोकने के लिए पुलिस की मानसिकता में बदलाव जरूरी है।
-अन्नपूर्णा खाती, बीकानेर
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पुलिस हिरासत में प्रताडऩा, बीमार होने पर समय पर चिकित्सा उपलब्ध न कराना या मानसिक रूप से परेशान करने के कारण कई बार आरोपी की मौत तक हो जाती है। कई बार आरोपी न्याय की आशा न रखकर स्वयं को समाप्त करने की भावना से चोट पहुंचा लेते हैं।
-हरिप्रसाद चौरसिया, देवास, मध्यप्रदेश
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पुलिस हिरासत में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। बंदियों को न उचित स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई जाती है और न ही उनकी मानसिक स्थिति को समझा जाता है। मानसिक रूप से भयभीत एवं अवसाद ग्रस्त कैदी पुलिस की प्रताडऩा से टूट जाते हैं। कई बार यातना, घोर उपेक्षा एवं उचित उपचार न मिलने के कारण उनकी पुलिस हिरासत में ही मौत हो जाती है।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़, छत्तीसगढ़
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पुलिस हिरासत में मौतें पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती हैं। पुलिस आरोपियों के साथ मारपीट करती है और उनको मानसिक रूप से प्रताडि़त करती है। पुलिस की कार्यशैली पर उठ रहे सवालों को गंभीरता से लेते हुए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए।
-प्रकाश भगत, चांदपुरा, नागौर