scriptक्यों नहीं रुक रही राजनीतिक हिंसा | Why political violence is not stopping | Patrika News
ओपिनियन

क्यों नहीं रुक रही राजनीतिक हिंसा

चुनाव से पहले हिंसा का तांडव, चुनाव के दौरान मार-काट और अब नतीजों के बाद बदले की भावना में आगजनी और तोड़-फोड़। चुनावी नतीजों के बाद भी पश्चिम बंगाल में उठी हिंसा की लपटों को लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता।

May 04, 2021 / 09:37 am

विकास गुप्ता

क्यों नहीं रुक रही राजनीतिक हिंसा

क्यों नहीं रुक रही राजनीतिक हिंसा

चुनावी नतीजों के बाद भी पश्चिम बंगाल में उठी हिंसा की लपटों को लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता। चुनाव से पहले हिंसा का तांडव, चुनाव के दौरान मार-काट और अब नतीजों के बाद बदले की भावना में आगजनी और तोड़-फोड़। देश में प. बंगाल की पहचान कई मायने में अलग रही है। व्यापारिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में इस राज्य ने अलग पहचान बनाई है। ऐसे राज्य में इस तरह हिंसा का तांडव समझ से परे है। चुनावी राजनीति के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों में छिटपुट हिंसा की खबरें आती हंै, लेकिन प. बंगाल में राजनीतिक हिंसा की लगातार हो रही घटनाएं झकझोरने वाली हैं। प. बंगाल के साथ देश के चार अन्य राज्यों में भी चुनाव हुए। तीन राज्यों में तो एक ही दिन में मतदान सम्पन्न हो गया।

शांति के साथ प्रचार भी हुआ, मतदान भी और नतीजे भी। फिर प. बंगाल में ऐसा खून-खराबा क्यों? इसका जवाब किसी के पास नहीं। वामपंथी दलों की सरकार के दौर में भी प. बंगाल बदले की राजनीति का गवाह रहा है। राज्य में सत्ता बदलने के बावजूद राजनीतिक हिंसा में कमी नहीं आना तमाम राजनीतिक दलों को कठघरे में खड़ा करता है। कार्यकर्ताओं के बीच छिटपुट झड़पें होना अलग बात है, लेकिन प. बंगाल में जिस तरह प्रायोजित हिंसा का दौर चल रहा है, वह चिंताजनक है।

चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य से लगातार शर्मसार करने वाली तस्वीरों का आना हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। सवाल यह कि राजनीतिक हिंसा को रोकने की दिशा में सरकारें और राजनीतिक दल संवेदनशील क्यों नहीं हैं? ऐसे मुद्दे पर कभी कोई सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं होती? हिंसा में शामिल अराजक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती? राजनीतिक दल आपराधिक गतिविधियों में शामिल कार्यकर्ताओं को आखिर तवज्जो क्यों देते हैं? सब जानते हैं कि लोकतंत्र में हिंसा के दम पर मतदाताओं को अपने बस में नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके हिंसा लगातार बढ़ रही है।

देश में अनेक ऐसे राज्य हैं, जहां चुनावी राजनीति सामान्य तरीके से चलती है। होना भी यही चाहिए। लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है। आश्चर्य तब होता है, जब राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व ऐसे मामलों में राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठने का साहस नहीं दिखाता। दुनिया के विभिन्न देशों में चुनाव होते हैं, लेकिन एकाध को छोड़कर कहीं ऐसी हिंसा नहीं होती। जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक दलों के साथ चुनाव आयोग भी इस मामले में गंभीर बने। बयानों तक सीमित नहीं रहे। हिंसा रोकने के लिए सख्त कानून बनाया जाए।

Home / Prime / Opinion / क्यों नहीं रुक रही राजनीतिक हिंसा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो