सच कहें तो जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि सरकार और जनता दोनों के प्रयासों से ही संभव है। इन सबके बीच में गरीबी दूर करने का उद्देश्य सर्वोपरि स्वीकार किया गया है। स्वतंत्र भारत की आज तक की सभी सरकारें इसके लिए काम करती आ रही हैं और विभिन्न उपायों से लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने का प्रयास होता रहा है। वित्तमंत्री का यह ताजा बयान कि इस दिशा में काफी प्रगति हुई है और लोगों की आर्थिक दशा सुधरी है, बेहद सुकून देने वाला है।
देश की आर्थिक सेहत सुधरने के कई संकेत मिल रहे हैं और देशी-विदेशी अनेक विशेषज्ञों की भविष्यवाणी इसी तरह की हैं। दूसरी ओर सामाजिक समता , न्याय , सौहार्द और जनहित के लिए किए जा रहे प्रयासों और उपलब्धियों की जमीनी हकीकत से आम आदमी के मन में कुछ दुविधाएं भी बनी हुई हैं। इस दौरान बढ़ती महंगाई , बेरोजगारी, नौकरशाही और न्याय व्यवस्था की मुश्किलों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विकसित भारत की यात्रा में इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। विकसित भारत की कल्पना को आकार देने के लिए भौतिक संसाधन ही काफी नहीं होंगे। इसके लिए प्रशिक्षित और दक्ष मानव-संसाधन की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। अब भारत जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया में सबसे आगे हो चुका है। यही वजह है कि शिक्षा चाहने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। इस दृष्टि से शिक्षा के लिए प्रावधान को बढ़ाने की जरूरत होगी। आम सहमति के मुताबिक शिक्षा पर बजट में छह प्रतिशत का आवंटन होना चाहिए। इस लक्ष्य तक हम आज तक नहीं पहुंच सके हैं।
प्रस्तावित शिक्षा नीति- 2020 के प्रति वर्तमान सरकार में बड़ा उत्साह है और पिछले कुछ वर्षों में उसका प्रचार-प्रसार भी खूब हुआ है। परंतु उसके प्रावधानों को कार्य रूप में ढालने के लिए जरूरी पहल और पूंजी निवेश नहीं दिख रहा है। पूर्व विद्यालय (प्री स्कूल) से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर तक महत्त्वाकांक्षी परिवर्तन का प्रस्ताव सामने आया है। इसमें शिक्षा की संरचना, प्रणाली, माध्यम, शिक्षक-प्रशिक्षण और पाठ्यविषयवस्तु सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन वांछित है। इसी तरह शिक्षा के अधिकार को मूर्त रूप देने की बात भी हुई है। इन सबके लिए अतिरिक्त आर्थिक संसाधन का निवेश अनिवार्य होगा। विकसित भारत के मुख्य सरोकार के रूप में गरीब, महिला, किसान और युवा वर्ग के विकास के लिए सरकार अपनी प्रतिबद्धता जता रही है। इनके लिए गुणवत्ता वाली शिक्षा ही आधार हो सकती है। शिक्षा जगत की जरूरतों पर अवश्य ध्यान दिया जाए।