पदक विजेता का संघर्ष-
दिल्ली के मजनू के टीला में हरीश चाय की दूकान में काम करते है जहां ग्राहक उसे छोटू कहकर बुलाते हैं। हरीश के लिए संघर्ष से पहले एक अच्छा समय भी था जब उन्होंने देश के लिए सेपक टाकरा में देश के लिए पहला पदक जीता था। जब वह देश लौटे तो उनको लेने उनके पड़ोसी पूरी बस लेकर पहुंचे थे। उनको इस मुकाम तक पहुंचने में दो लोगों का बड़ा साथ मिला, एक उनके कोच हेमराज और दूसरे उनके बड़े भाई नवीन। कोच हेमराज उन्हें स्टेडियम आने-जानें का किराया तक देते थे। लड़के ने दोनों को निराश नहीं किया और भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई।
पदक विजेता को क्या मदद मिली?
पदक विजेता हरीश से को अभी तक सरकार से कोई मदद नहीं मिल सकी है। सरकार से क्या मदद मिली पूछे जानें पर उनका जवाब था कि अभी तो कुछ भी साफ़ नहीं है। उनका कहना है कि वह अभी अपनी 12वीं की पढाई पूरी करना चाहेंगे। बता दें कि हरीश की टीम में 12 सदस्य थे। अब देखना ये है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार से इस खिलाड़ी को क्या मदद मिलती है।
जीता था कांस्य पदक-
भारतीय टीम ने 18वें एशियाई खेल में सेपक ताक्रा की टीम स्पर्धा का कांस्य अपने नाम किया था। यह भारत द्वारा इस स्पर्धा में जीता गया पहला एशियाई खेलों का पदक है। भारत को ग्रुप-बी सेमीफाइनल में थाईलैंड के खिलाफ 0-2 से हार का सामना करना पड़ा था लेकिन इस हार के बावजूद वह कांस्य पदक जीतने में कामयाब रही थी।