scriptबगड़ी की ‘मोजरी’ को लगा कोरोना का कांटा | Mojri business stalled due to corona in Bagdi Nagar of Pali district | Patrika News
पाली

बगड़ी की ‘मोजरी’ को लगा कोरोना का कांटा

-व्यापारियों में मायूसी, फिर से मंडराने लगा कोरोना का खतरा

पालीDec 02, 2021 / 06:48 pm

Suresh Hemnani

बगड़ी की ‘मोजरी’ को लगा कोरोना का कांटा

बगड़ी की ‘मोजरी’ को लगा कोरोना का कांटा

पाली/बगड़ी नगर। राजस्थान अपने इतिहास ओर अनोखी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां के गांवों में मिलने वाली और बनने वाली चीजें यहां की संस्कृति को खूब दर्शाती हैं। कुछ तो चीजें इतनी पसंद होती हैं कि घर के खास समारोह में यहीं से खरीदारी करना पसंद करते हैं। ऐसे में हाथ से बनी मोजरी व जूती बहुत पसंद की जाती हैं। कस्बे के मोचीवाड़ा में सोहनलाल, सम्पतलाल, दिनेश व गणपतलाल के परिवार ऐसी ही कलात्मक मोजरी बना कर अपने परिवार का पेट पालते हैं। इनकी बनाई मोजरी व जूतीयां कस्बे सहित आसपास के क्षेत्र में भी मशहूर हैं।
अभी शादियों का सीजन चल रहा है। ऐसे में बगड़ी नगर के मोजरी बनाने वाले इन हुनरमंद दस्तकारों के हाथ से बने बिन्दोले यानी चमकदार मोजरी व जूते पहनकर दुल्हे- दुल्हन ने अपनी शादियां रचाई हैं। पिछले दो साल से कोरोना महामारी के कांटे ने इन दस्तकारों के हुनर पर जो ग्रहण लगाया है उससे इनकी हालत खराब हो रही है।
कोरोना के कांटे से ग्रहण
कस्बे के दस्तकारों के हुनर को पिछले दो सालों से कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन के कारण ग्रहण लगा हुआ है। इस बार कुछ राहत मिलने की उम्मीद जगी थी, लेकिन फिर से कोरोना वायरस के कांटा सक्रिय होने से मोजरी के ये हुनरमंद दस्तकार घबराने लगे हैं। लॉकडाउन में इन दस्तकारों के परिवारों को राशन मिल रहा था। लॉकडाउन खुलने के बाद अब सरकार से मदद नहीं मिल रही है। बिक्री भी नहीं हो रही है। ऐसे में इनकी हालत खराब हो रही है।
कच्चा माल मिलने में होती है परेशानी
वर्तमान में यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में इन दस्तकारों को फैशनेबल मोजरी बनाने के लिए कच्चे माल की बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है। जोजावर, पीपाड़, जोधपुर से चमड़े के फुटकर व्यापारियों के पास से खरीदा चमड़ा, सूत, ऊन, वेलवेट, जरी, सीट आदि सामग्री बहुत महंगी मिलती है। दूरी अधिक होने से इन शहरों से माल लाने के लिए एक दो दिन का समय लग जाता है, जिससे इनकी मजदूरी मारी जाती है। कई बार चमड़ा समय पर नहीं मिल पाता है।
कोई सरकारी मदद नहीं मिलती
कस्बे के दिनेश मोची ने बताया कि मेरे परिवार के लोग पिछले साठ सत्तर सालों से मोजरी बनाने का काम कर रहे हैं। सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है। राशन के गेहूं भी नही मिल रहे हैं। यहां कारीगरों के लिए आज तक कोई भी कोई सरकारी योजना लागू नहीं हुई। इस कारण हमारी आर्थिक स्थिति बदतर होती जा रही है।

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