युद्ध से पूर्व मातूभूमि के रक्षक एवं नेतृत्व कौशल के धनी कुशालसिंह चांपावत की अगुवाई में प्रमुख ठिकानेदारों की बैठक हुई थी, जिसमें बातां, भीमालिया, लांबिया, बगड़ी, बिठुड़ा तथा जोधपुर व नागौर जिले के आसोप, आलनियावास व गुलर के जागीरदारों ने स्वाधीनता समर में कूदने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी सेनाएं एकत्रित की और अंग्रेजों पर टूट पड़े। अंग्रेज और रियासत की सेना का खात्मा करने के लिए उनका खून खौल उठा। क्रांतिवीरों ने दो बार अंग्रेजों को परास्त किया। यहां तक की अंग्रेजों को भागने पर मजबूर होना पड़ा। अंग्रेज अफसर मॉक मेंसन की गर्दन काटकर आऊवा के किले में लटका दी थी। बाद में अंग्रेजों ने हथियार और सैन्यबल के बूते कांतिवीरों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। वे फिरंगियों का कहर झेल गए, लेकिन अपना मनोबल नहीं तोड़ा।
अंग्रेजों ने सैन्य दस्ते ने ध्वस्त कर दिए थे जागीरदारों के आवास आऊवा के साथ बांता, लांबिया, भीमालिया जैसे जागीरदार के जुडऩे से क्रांतिकारियों का कारवां बढ़ गया। इससे अंग्रेज बौखला गए। आऊवा पर ब्रिटिश सेना द्वारा प्रारंभ किए गए युद्ध के कमांडर कर्नल होम्स ने एजेंट टू गर्वनर जनरल जीएसपी लॉरेंस को 31 जनवरी 1858 को पत्र लिखकर क्रांतिकारियों के आवास ध्वस्त करने की सूचना दी। लॉरेंस ने यह भी लिखा कि आऊवा का गढ़ ध्वस्त करने का काम शुरू कर दिया है तथा फरवरी 1858 तक पूरा कर लिया जाएगा। अन्य जागीरदारों के आवास उड़ाने के लिए सैन्य दल, 50 सिंध के घोड़े, बंदूकें इत्यादि अंग्रेज अफसर मेजर हीट की अगुवाई में भेजे गए। हथियारों के बल पर अंग्रेज सेना ने जागीरदारों के आवास पूरी तरह से ध्वस्त कर दिए। होम्स ने मारवाड़ रियासत के एजेंट टू गर्वनर को यह भी बताया कि आऊवा में भय का वातावरण पैदा कर दिया है जिससे ब्रिटिश सत्ता को राहत मिलेगी।
वीरों के स्मारक बनाए सरकार पाली जिले के कई गांवों का 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान रहा था। तत्कालीन ठिकाणों के जागीरदार अंग्रेजों से डटकर लड़े। ऐसे कांतिवीरों के स्मारक बनाए जाने चाहिए। सरकार को इतिहास संरक्षण के लिए भी रुचि दिखानी चाहिए।
समुंदरसिंह चांपावत, सरपंच, ग्राम पंचायत, बांता वीर जाबांजों को मिले सम्मान 1857 स्वाधीनता संग्राम के वीर जाबांजों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए। इतिहास, वीरता की गाथाएं स्वर्णिम अक्सरों में अंकित हो इसके लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए। इतिहास हमारी विरासत है। आजादी की लड़ाई में इनके योगदान को कम नहीं आंका जा सकता।
प्रतापसिंह, सरपंच, ग्राम पंचायत लांबिया