जिले से पलायन करने वाले लोगों का प्रशासन किसी तरह का रिकॉर्ड नहीं रखता और ना ही उन्हें किसी प्रकार का सुरक्षा कवच ही प्रदान करता है। इससे कार्यस्थल पर किसी प्रकार की अपराधिक गतिविधि का शिकार होने, काम के दौरान हादसा होने जैसी किसी भी स्थिति से उन्हें अपने बलबूते पर ही निपटना होता है। बाहरी शहरों में मजबूर व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पाते हैं। हरियाणा के झज्जर में पांच लोगों की हत्या की घटना के पूर्व भी इसी तरह कई लोगों के शव यहां पहुंच चुके हैं तो कुछ मरणासन्न हालत में यहां पहुंचे। जिनके संबंध में कोई जिम्मेदार कुछ नहीं बोलता है।
जिला प्रशासन के पास ऐसा कहीं रिकॉर्ड नहीं होता है जिसमें यह दर्ज हो कि जिले से कितने लोग पलायन करके गए और उनमें से कितने लोग सुरक्षित तरीके से वापस लौट आए। प्रशासन के अधिकारियों के इस लापरवाही की सजा गरीब पलायन करने वाले मजदूर भुगत रहे हैं। पूर्व में मीडिया और एनजीओ के लोगों के दबाव में तत्कालीन कलेक्टर ने हर ग्राम पंचायत में पलायन पंजी रखने और पंचायत क्षेत्र से पलायन करने वाले हर व्यक्ति का रिकॉर्ड रखने के निर्देश दिए गए थे। जिनपर बिल्कुल भी अमल नहीं हुआ।
जिले में लोगों को मनरेगा में काम नहीं मिल पा रहा है। मनरेगा के अनुसार जिले में १ लाख २८ हजार ५२० लोगों को जॉब कार्डजारी किए गए हैं। इनमें से 43 हजार 844 परिवारों द्वारा काम की मांग की गई। मनरेगा एक्ट हर परिवार को 100 दिन के काम की गारंटी देता है, लेकिन जिले के 1 लाख 28 हजार से अधिक जॉब कार्डधारी परिवारों में से सिर्फ 127 परिवारों को ही 100 दिन का काम मिल पाया। यह कुल ज्ॉाब कार्डधारियों का एक फीसदी से भी बहुत कम है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में बेरोजगारी का स्तर क्या होगा। जिनको काम भी मिला उनमें से कई लोगों को समय पर मजदूरी नहीं मिल पाती है। इसका कारण है कि जिले में मनरेगा का हर समय एक करोड़ से भी अधिक मजदूरी का भुगतान रिजेक्ट ट्रांजेक्शन में फंसा रहता है।