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पटना

खराब हो रही है बिहार की मिट्टी

विश्व मृदा दिवस 5 दिसंबर : बिहार को अपनी मिट्टी बचाने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा।

पटनाDec 04, 2018 / 06:45 pm

Gyanesh Upadhyay

विश्व मृदा दिवस 5 दिसंबर

विश्व मृदा दिवस 5 दिसंबर

पटना। बिहार गंगा, सरयू, गंडक, बागमती, कोशी जैसी विशाल नदियों का प्रदेश है, लेकिन फिर भी यहां की मिट्टी अपनी गुणवत्ता खोने लगी है। अनेक शोध हुए हैं, जो यह बताते हैं कि बिहार में भूमि, जल और वायु, तीनों का प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।

पटना विश्व का पांचवां सबसे प्रदूषित शहर
बिहार की राजधानी का ही हाल बुरा है। जलापूर्ति और जल-मल निकासी की व्यवस्था खराब है। ज्यादातर लोगों को खुद ही जल और उसकी निकासी का इंतजाम करना पड़ता है, नतीजा सामने है, न केवल मिट्टी, बल्कि यहां हवा और पानी की भी गुणवत्ता बहुत खराब हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में इसी वर्ष पटना को दुनिया के पांच सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शामिल किया था। मई 2018 में ही सरकारी आंकड़ा सामने आया था, 20 लाख आबादी वाले पटना में मात्र 132 सार्वजनिक शौचालय थे। स्वच्छ भारत अभियान राजधानी में ही विफल हो जा रहा है।

जनसंख्या का अत्यधिक दबाव
बिहार की जनसंख्या 9 करोड़ के आसपास पहुंच रही है। भूमि पर जन दबाव बहुत ज्यादा है। बिहार में प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 880 लोग निवास करते हैं, जबकि देश में प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मात्र 324 लोग रहते हैं। बिहार से बड़ी संख्या में पलायन के बावजूद यहां की आबादी तेजी से बढ़ रही है। बढ़ती आबादी का पेट भरने में यहां की भूमि विफल होने लगी है।

बढ़ता भू-जल दोहन
सरकार द्वारा जलापूर्ति के मामले में बिहार बहुत पीछे चल रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 7 निश्चय में यह वादा भी शामिल था कि बिहार के हर घर तक पाइप से पानी पहुंचाया जाएगा, इस दिशा में वर्ष 2016 में शुरू हुआ काम धीमी गति से हो रहा है। आर्सेनिक प्रभावित सभी क्षेत्रों में ही जलापूर्ति शुरू नहीं हो पाई है। बिहार के गांव और शहर भू-जल के दोहन को मजबूर हैं।

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भू-जल की घटती गुणवत्ता
भूज-जल की घटती गुणवत्ता से बिहार की मिट्टी लगातार खराब हो रही है। नदियों के प्रदेश में पहले 40 फीट से पहले ही बहुत अच्छा पानी मिल जाता था, लेकिन अब जमीन में 40 फीट से ज्यादा नीचे जाने पर आर्सेनिक, आयरन, फ्लोराइड, नाइट्रेट, लीड इत्यादि की बड़ी मात्रा मिल रही है। यह पानी पीने और फसल के योग्य भी नहीं है। दूषित या जहरीला पानी अंतत: मिट्टी की ऊपरी सतह को भी खराब कर रहा है, जिससे उपजाऊ शक्ति कम हो रही है।

बढ़ती बीमारियां
भूमि, जल और वायु प्रदूषण से बिहार में चर्म रोग से लेकर कैंसर तक की समस्याएं बढ़ रही हैं। पानी में आर्सेनिक सबसे खतरनाक साबित हो रहा है। भोजपुर इत्यादि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बिना नेत्र के बच्चे पैदा होने लगे हैं। खतरनाक रसायन वाले पानी से भूमि की उत्पादकता घट रही है। फसलें भी दुष्प्रभावित हो रही हैं।

कैसी बचेगी मिट्टी?
बिहार के जल विशेषज्ञों की रिपोर्ट बिहार सरकार के सामने है। जलापूर्ति के कार्य को बिहार में सरकार पूरी तरह अपने हाथ में ले और शोधन के बाद ही पीने योग्य जल की आपूर्ति हो। लोगों को जागरूक किया जाए कि वे भूमि को गंदा करने से बचें। अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका में प्रकाशित असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार सिंह की रिपोर्ट बताती है कि बिहार सरकार को गंभीरता से उपाय करने होंगे। खुले में शौच जाने की व्यापक प्रवृत्ति को रोकना पड़ेगा। यदि हम नहीं जागे और हमने यदि कदम नहीं उठाए, तो हमारी स्थिति बांग्लादेश से भी बुरी हो जाएगी।

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