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पटना

यहां अब भगवान और भक्तों के मिलन की दूरी होगी खत्म

(Bihar News ) लॉक डाउन में बनी भगवान और भक्तों की ( Lokc will open of temples ) दूरी अब समाप्त होगी। प्रसिद्ध हनुमान मंदिर समेत गया के विश्वप्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर (Famous Hanuman and Vishnupad temple will open on 8 June ) आठ जून से आम लोगों के लिए खोले जाएंगे। इस बीच बोधगया के प्रसिद्ध बौध मंदिर को अभी सार्वजनिक रूप से खोलने की अनुमति नहीं दी गई है।

पटनाJun 03, 2020 / 06:05 pm

Yogendra Yogi

यहां अब भगवान और भक्तों के मिलन की दूरी होगी खत्म

यहां अब भगवान और भक्तों के मिलन की दूरी होगी खत्म

पटना(बिहार)प्रियरजंन भारती: (Bihar News ) लॉक डाउन में बनी भगवान और भक्तों की ( Lokc will open of temples ) दूरी अब समाप्त होगी। प्रसिद्ध हनुमान मंदिर समेत गया के विश्वप्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर (Famous Hanuman and Vishnupad temple will open on 8 June ) को भक्तों के दर्शनार्थ खोला जाएगा। गृह मंत्रालय के आदेशानुसार मिली गाइडलाइंस के तहत आठ जून से मंदिर के पट आम लोगों के लिए खोले जाएंगे। इस बीच बोधगया के प्रसिद्ध बौध मंदिर को अभी सार्वजनिक रूप से खोलने की अनुमति नहीं दी गई है।

हनुमान मंदिर को करोड़ों का नुकसान

पटना जंक्शन स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर आठ जून को भक्तों के लिए खुल जाएगा। महावीर मंदिर न्यास के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि मंदिर में उन्हीं भक्तों को प्रवेश मिलेगा जो इस निमित्त ऑनलाइन आवेदन कर प्रवेश पास हासिल कर चुके होंगे। मंदिर में हर दिन आवेदनों में से ऑड इवेन आधार पर भक्तों को प्रवेश की सीमित संख्या में अनुमति दी जाएगी।

कोरोना से अस्पताल बंद
गौरतलब है कि लॉकडाउन में मंदिर के बंद रहने से हर माह दो करोड़ का नुकसान हो रहा है। अभी तक इसे आठ करोड़ से अधिक का नुकसान हो चुका है। इधर न्यास द्वारा संचालित महावीर कैंसर अस्पताल में तीन मरीजों के कोरोनावायरस संक्रमित पाए जाने पर इसे फिलहाल बंद कर दिया गया है। अब ओपीडी और इमरजेंसी सेवा भी चार जून के बाद शुरु हो पाएगी।

विश्वप्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर भी खुलेगा

गया का विश्वप्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर भी भक्तों के दर्शनार्थ आठ जून से खोला जाएगा। मंदिर के लगातार बंद रहने से गयाधाम से जुड़े व्यवसाय पूरी तरह ठप पड़ गए हैं। गयापाल पंडों और उनके परिजनों के भरण पोषण की भी भारी कठिनाइयां होने लगी थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेल भेजकर मंदिर प्रबंधकारिणी समिति ने मंदिर खोलने की अनुमति देने की अपील की थी। विष्णुतीर्थ गया धाम में भगवान विष्णु द्वारा गयासुर को दिए गए दो वरदानों ‘एक पिंड, एक मुंडÓ की प्राचीन परंपरा गयावाल पंडों ने इस दरमियान अपने पुरखों का पिंडदान कर निभाई। जबकि मंदिर के पास श्रमदान में कोरोनाकाल में अंतिम संस्कार के लिए शव नहीं लाए जाने के चलते हर दिन पुतला दहन कर परंपरा का निर्वहन किया जाता रहा।

अहिल्या बाई ने कराया था विष्णुपद मंदिर का निर्माण
मंदिर का निमाज़्ण 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया। इसके गुंबद पर 51 किलो सोना चढ़ा है। एक चोर कभी इसे चुराने ऊपर चढ़ा लेकिन गिरकर वहीं मर गया था। उस स्थान को भी भक्तगण कौतूहल से देखते हैं। पौरोणिक कथा के अनुसार विष्णुभक्त गयासुर के विशालकाय शरीर पर हुए विष्णु यज्ञ में उसके मोक्ष प्राप्त होने के साथ ही गया सुर के नाम से गया शहर का नामकरण हुआ। वैदिक काल में यह क्षेत्र की कट प्रदेश था जहां गयासुर के आतंक से त्रस्त देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से उसके हृदयस्थल पर ही संसार के कल्याणार्थ यज्ञ करने की याचना की। गयासुर के विशालकाय हृदयस्थल पर विष्णुयज्ञ के दौरान सभी सहस्त्र कोटि देवी-देवता विराजे।

मुंड ओर पिंड की परंपरा
गया माहात्म्य के मुताबिक विष्णुयज्ञ में विष्णुभक्त ब्राह्मण गरूड़ पर सवार होकर शाक्यद्वीप से लाए गए। ये मगी ब्राम्हण यानी सूर्योपासक ब्राम्हण थे। इनके कारण ही मगध क्षेत्र कहलाया जाने लगा। विष्णु ने अग्निज्वाला से तड़प रहे गयासुर को स्वर्ग में पाषाण बनी शापित अहिल्या को लाकर अपने चरण से दबाया तब वह देहयोनि से मुक्त हुआ। इधर अहिल्या भी विष्णुचरण से शाप मुक्त हुई। तभी गयासुर ने भगवान से तीन वर मांगे जिनमें एक मुंड एक पिंड हर रोज मिलना जरूरी कहा। इसने यह वर भी प्राप्त किया कि सहस्त्र कोटि देवता यहीं हमेशा निवास करें। तभी से गयावाल सबसे बड़ा हिंदुतीर्थ माना गया।

हनुमान मंदिर में हैं दो मूर्तियां
पटना के चर्चित हनुमान मंदिर का जीर्णोंद्धार पटना के सीनियर एसपी रहे और बाद में आचार्य बने किशोर कुणाल ने करवा कर इसे भ्रम स्वरूप दिया। इस मंदिर में हनुमान जी के दो विग्रहों वाली मूर्तियां हैं। इनमें से एक दुखहरण और दूसरे मनोकामनापूरण हैं। आचार्य किशोर कुणाल ने इस मंदिर का 1985 में जीर्णोंद्धार करवाया। इससे पहले 1948 में पटना हाईकोर्ट ने इस मंदिर को सार्वजनिक घोषित कर दिया था।1853में एक संप्रदाय विशेष के धमाचार्यों की जयपुर में हुई बैठक के बाद देश भर के मंदिरों के कायाकल्प का निर्णय लिया गया तब इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।

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