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पटना

बिहार में शिक्षा की चिंता किसे, उपवास पर उपेन्द्र कुशवाहा

केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा एक शुरुआत कर रहे हैं, भले ही इसके पीछे उनकी राजनीति हो, लेकिन विकास के लिए ऐसे संघर्ष की बिहार में बड़ी जरूरत है।

पटनाDec 08, 2018 / 05:58 pm

Gyanesh Upadhyay

बिहार के विकास के लिए उपवास

बिहार के विकास के लिए उपवास

पटना। नालंदा और विक्रमशिला का वह दौर इतिहास में दर्ज है। पहले पूरी दुनिया के छात्र अच्छी शिक्षा के लिए बिहार आते थे, लेकिन आज इसी बिहार में छात्र बाहर जाकर पढऩे को मजबूर हो रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा दो दिवसीय उपवास पर हैं, ताकि शिक्षा की दिशा में बिहार सरकार काम करे और सुधार हो। यह बिहार के लिए भी दुर्लभ क्षण है कि कोई नेता वाकई विकास के लिए उपवास कर रहा है। तमाम विशेषज्ञ यह बात कई बार बोल चुके हैं कि बिहार के नेताओं में विकास के लिए तड़प नहीं है, इसलिए राज्य पिछड़ गया।
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चरवाहा मॉडल बनाम नालंदा मॉडल
लालू प्रसाद यादव शिक्षा सुधार के लिए विद्यालय का चरवाहा मॉडल लेकर आए थे, जो नाकाम रहा। अब नीतीश कुमार के नालंदा मॉडल की बात हो रही है, लेकिन जिस तरह के शिक्षकों को रखा जा रहा है, उससे यह नया मॉडल भी फेल हो जाएगा। शिक्षकों की भर्तियों में घोर जातिवाद, भाई भतीजावाद और रसूख की भूमिका रही है, जिसकी वजह से शिक्षकों की गुणवत्ता बिहार में बहुत खराब हो चुकी है।

क्या यहां नहीं होती अच्छी पढ़ाई?
आईएएस और आईपीएस की नौकरी में बिहार के युवा बड़ी संख्या में चुने जाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें से ज्यादातर युवा बाहर जाकर पढ़ते हैं, तभी कामयाब होते हैं। हालांकि विशेषज्ञ बताते हैं कि अच्छी नौकरी में बिहार के युवाओं की संख्या अब घट रही है। इसके लिए मुख्य रूप से बिहार की खराब शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है।

बिहार में साक्षरता प्रतिशत
वर्ष 1951 – 13.49
वर्ष 1981 – 32.32
वर्ष 2001 – 47.53
वर्ष 2011 – 63.8
वर्ष 2018 – 71 (अनुमानित)

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