राजनीति में कदम रखना नहीं था आसान हालांकि गीता का राजनीति में आना उतना आसान भी नहीं था।गीता के मुताबिक शुरू-शुरू में परिवार वालों ने राजनीति में आने का काफी विरोध किया। माता पिता के सामने जब मैंने ये प्रस्ताव रखा तो उन लोगों ने साफ मना कर दिया। यहां तक की रिश्तेदार भी इसके खिलाफ थे। लेकिन मेरे अंदर कुछ करने की चाहत थी और फिर मैंने ठान ली कि छात्रों के खिलाफ होने वाली गतिविधि को उठाऊंगी। और इसी का नतीजा है कि मैं आज छात्रों के समर्थन से चुनाव जीती हूं। हां अब हमारे माता-पिता राजनीति करने का विरोध नहीं करते। बल्कि अब उन्हें राजनीति करना पसंद है। गीता ने बताया कि उनके माता-पिता उनकी जीत से खुश हैं।
ये होगी प्राथमिकता गीता ने बताया कि 9 फरवरी को जेएनयू में हुई घटना के बाद उनके माता-पिता जेएनयू के पक्ष में खड़े थे। हालांकि वे गीता को संभलकर रहने की सलाह भी देते हैं।गीता की पहली प्राथमिकता यूजीसी द्वारा जेएनयू में की गई सीट कट के खिलाफ लड़ना गायब छात्र नजीब को न्याय दिलवाने के लिए के आवाज उठाना। नए हॉस्टल बनाने समेत कई मुद्दें हैं।
जीत का श्रेय छात्रों को जीत के बाद गीता कुमारी ने कहा कि मैं इस जश्न के मौके का श्रेय जेएनयू के उन छात्रों को देती हूं जो मानते हैं कि यह इस जैसी लोकतांत्रिक जगह को बचाए रखने की जरूरत है। गौरतलब है कि वाम गठबंधन की संयुक्त उम्मीदवार गीता कुमारी ने 1506 वोट प्राप्त कर एबीवीपी की निधि त्रिपाठी को हराया है। निधि त्रिपाठी को 1024 वोट मिले हैं।