बता दें कि 2011-12 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले तत्काली मायावतवी ने ब्राह्मणों सहित सभी सवर्ण जातियों को 15 फीसद आरक्षण देने की घोषणा की थी। लेकिन मायावती सरकार को 2012 में समाजवादी पार्टी ने हराकर सरकार बनाई और यह मुद्दा दब गया। 2013 में भी बसपा सुप्रीमो मायावती ने सवर्णों को भी आरक्षण देने की वकालत की थी। उसके बाद भी मायावती सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की वकालत करती रही हैं। मायावती ने 2012 में लखनऊ स्थिति बसपा मुख्यालय में ब्राह्मण सम्मेलन भी आयोजित किया था।
दरअसल, 2007 के चुनाव में सतीशचंद्र मिश्र को आगे करके मायावती ने ब्राह्मण वोट प्राप्त कर लिए थे और इन वोटों की सहायता से उन्हें पहली बार बसपा की बहुमत वाली सरकार बनाने का मौका मिला, लेकिन दलितों के लिए प्रमोशन में आरक्षण की वकालत करके उन्होंने सवर्ण वोट खो दिए हैं क्योंकि जब मामला पेट से जुड़ जाता है तो लोग वोट देने में हिचक जाते हैं।
इसी तरह पिछले कुछ वर्षों से बिहार के नीतीश कुमार की सरकार के पास भी सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रस्ताव लंबित है। इसके साथ ही देश भर में पिछले कई वर्षों से आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने की बात सियासी मुद्दा बनता रहा है। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लेकर मोदी सरकार ने अपना मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। अब देखना ये है कि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां इसका काट क्या निकालती हैं?