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नागरिकता बिल पर बोले अमित शाह, मुसलमानों को चिंता करने की जरूरत नहीं

आज राज्यसभा में पेश हुआ नागरिकता संशोधन बिल
गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में पेश किया बिल
मुस्लिम इस देश के नागरिक थे और रहेंगे: शाह

नई दिल्लीDec 11, 2019 / 06:33 pm

Shivani Singh

नई दिल्ली। लोकसभा के बाद आज राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश हो गया। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद के पटल पर नागिरकता बिल को पेश किया। इस दौरन अमित शाह ने कहा कि इस बिल से करोड़ों लोगों को उम्मीदें हैं। इस बिल से उन्हें यातना से मुक्ति मिलेगी।

शाह ने कहा कि देश के मुसलमानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। मुस्लिम इस देश के नागरिक थे और रहेंगे। अमित शाह ने कहा कि हमारी नजर पूर्वोतर पर भी है। वहां के लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि असम समझौते के क्लॉज-6 के तहत एक समिति सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहचान और स्थानीय भाषाई लोगों से संबंधित सभी चिंताओं का समाधान करेगी।

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शाह ने ऊपरी सदन में नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को पेश करते हुए कहा, ‘मैं इस सदन के माध्यम से असम के सभी मूल निवासियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि राजग सरकार उनकी सभी चिंताओं का ध्यान रखेगी। क्लॉज-6 के तहत गठित समिति सभी चिंताओं पर गौर करेगी।’
शाह ने कहा कि क्लॉज-6 के तहत समिति का गठन तब तक नहीं किया गया, जब तक कि नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में नहीं आई। उन्होंने कहा कि पिछले 35 सालों तक कोई भी परेशान या चिंतित नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि जब असम समझौते पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ओर से हस्ताक्षर किए गए थे, तब राज्य में आंदोलन रुक गए और लोगों ने जश्न मनाया, पटाखे फोड़े, लेकिन समिति का गठन कभी नहीं किया गया।
अमित शाह ने कहा कि अब समय आ गया है कि असमिया लोगों की समस्याओं का समाधान खोजा जाए। उन्होंने क्लॉज-6 के तहत गठित समिति से अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजने के लिए भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक लाई है।
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लेकिन इससे असम के स्थानीय लोगों को डर है कि इस कदम से बांग्लादेशी प्रवासियों को वैध बनाया जाएगा, जिससे उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरा होगा। स्थानीय असमिया लोग नौकरी और अन्य अवसरों के नुकसान से भी डर रहे हैं।
विधेयक पेश करते समय शाह ने इसे ऐतिहासिक करार दिया और कहा कि यह उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए एक आशा की किरण और एक नई शुरुआत है, जो वर्षों से अत्यधिक कठिनाई और दुख की जिंदगी जी रहे हैं।

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