ये वोट हैदराबाद ग्रेटर नगर निगम चुनाव ( Hyderabad GHMC Election ) के लिए खड़े पार्टी प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे जा रहे हैं। इन दिग्गजों के इस चुनाव के लिए हैदराबाद पहुंचने से ये चुनाव हाई प्रोफाइल चुनाव बन गया है।
पहाड़ों पर बर्फबारी के बीच मौसम विभाग का बड़ा अलर्ट, देश के इन राज्यों में अगले चार दिन तक बारिश का जारी किया अलर्ट एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ में बीजेपी यूं ही नहीं पहुंच गई है। यहां बीजेपी ने जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आईए जानते हैं आखिर ओवैसी के गढ़ में बीजेपी के जुटने के क्या मायने हैं।
दुनिया का सबसे बड़ी पार्टी यानी टीम बीजेपी 1 दिसंबर को होने वाले हैदराबाद ग्रेटर नगर निगम चुनाव को जीतने के लिए जी जान से जुटी है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व अध्यक्ष अमित शाह, सीएम योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर समेत कई केंद्रीय नेता और दर्जनों वरिष्ठ नेता प्रचार के लिए पार्टी पक्ष में माहौल बना चुके हैं। पार्टी की हर हाल इस चुनाव को जीतने के पीछे ये है रणनीति..
1. निकाय से विधानसभा की सीढ़ी
बीजेपी के लिए निकाय चुनाव के प्रति इस तरह की दीवानगी ये साबित करती है कि उसके लिए निचला स्तर भी काफी मायने रखता है। बीजेपी ने जीत के लिए अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए हैं। इसी तहत पार्टी अब जिन राज्यों जनाधार कम है वहां निकाय चुनाव के जरिए सत्ता पहुंचने की कोशिश कर रही है। हैदराबाद का चुनाव भी इसी रणनीति का हिस्सा है।
बीजेपी के लिए निकाय चुनाव के प्रति इस तरह की दीवानगी ये साबित करती है कि उसके लिए निचला स्तर भी काफी मायने रखता है। बीजेपी ने जीत के लिए अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए हैं। इसी तहत पार्टी अब जिन राज्यों जनाधार कम है वहां निकाय चुनाव के जरिए सत्ता पहुंचने की कोशिश कर रही है। हैदराबाद का चुनाव भी इसी रणनीति का हिस्सा है।
इससे पहले वर्ष 2018 के हरियाणा निकाय चुनाव में बीजेपी ने इसी रणनीति के जरिए करनाल, पानीपत, यमुनानगर, रोहतक और हिसार के पांच नगर निगमों पर कब्जा कर किया। इसका फल उन्हें प्रदेश में सरकार बनाने में मिला।
2. पार्टी जनाधार बढ़ाने पर फोकस
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही बीजेपी अब किसी भी कीमत पर अपने जनाधार को कमजोर नहीं होने देना चाहती है। यही वजह है की बीजेपी की योजना के तहत देशभर में अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। छोटे से छोटे चुनाव को जीतना भी इसी योजना की अहम कड़ी है।
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही बीजेपी अब किसी भी कीमत पर अपने जनाधार को कमजोर नहीं होने देना चाहती है। यही वजह है की बीजेपी की योजना के तहत देशभर में अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। छोटे से छोटे चुनाव को जीतना भी इसी योजना की अहम कड़ी है।
3. ओवैसी की जीत से बढ़ी चिंता
बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर कब्जा जमाया। ऐसे में ओवैसी ने बीजेपी के लिए थोड़ी चिंता जरूर बढ़ा दी है। राजनीतिक दल अब ओवैसी को गंभीरता से लेने लगे हैं। यही कारण है कि बीजेपी को ओवैसी को उसी के गढ़ में चुनौती देकर ये विरोधियों को कड़ा संदेश भी देना चाहती है।
बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर कब्जा जमाया। ऐसे में ओवैसी ने बीजेपी के लिए थोड़ी चिंता जरूर बढ़ा दी है। राजनीतिक दल अब ओवैसी को गंभीरता से लेने लगे हैं। यही कारण है कि बीजेपी को ओवैसी को उसी के गढ़ में चुनौती देकर ये विरोधियों को कड़ा संदेश भी देना चाहती है।
4. कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं में जोश
बीजेपी ने 2014 के चुनाव जीतने के बाद से ही पार्टी की रणनीति को विस्तार के साथ सदस्यों के संतोष पर जोर देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि पार्टी अब जमीनी स्तर पर अपनी मजबूती के लिए छोटे-छोटे अवसरों को भी बड़े आयोजनों में तब्दील कर देती है। छोटे आयोजनों में बड़े नेताओं के आने से स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं और नेताओं का उत्साह बढ़ता है।
बीजेपी ने 2014 के चुनाव जीतने के बाद से ही पार्टी की रणनीति को विस्तार के साथ सदस्यों के संतोष पर जोर देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि पार्टी अब जमीनी स्तर पर अपनी मजबूती के लिए छोटे-छोटे अवसरों को भी बड़े आयोजनों में तब्दील कर देती है। छोटे आयोजनों में बड़े नेताओं के आने से स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं और नेताओं का उत्साह बढ़ता है।
5. बॉटम से टॉप लाइन तक खत्म होता है गैप
छोटे-छोटे चुनाव में पार्टी के शीर्ष नेताओं के जाने से उन्हें भी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं से संवाद का मौका मिलता है। यही नहीं इसके साथ ही स्थानी मुद्दों के समझने में भी आसानी होती है। इससे शीर्ष नेतृत्व को पार्टी की दिशा तय करने में मदद मिलती है।
छोटे-छोटे चुनाव में पार्टी के शीर्ष नेताओं के जाने से उन्हें भी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं से संवाद का मौका मिलता है। यही नहीं इसके साथ ही स्थानी मुद्दों के समझने में भी आसानी होती है। इससे शीर्ष नेतृत्व को पार्टी की दिशा तय करने में मदद मिलती है।
कार्यकर्ता भी बड़े नेताओं के सामने अपनी समस्या रख पाने में सक्षम होते हैं। ऐसे में पार्टी में नीचे से ऊपर तक के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच गैप नहीं रहता। बंगाल चुनाव से पहले बीजेपी को बड़ा झटका, इस सहयोगी दल ने अलग होने का किया फैसला, ममता खेमे में खुशी की लहर
6. ओडिशा और बंगाल से मिली दिशा
बीजेपी के हैदराबाद का रण इसलिए ज्यादा जरूरी हो गया है क्योंकि पार्टी इसी तरह से ओडिशा के पंचायत चुनाव में जीतने का फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिल चुका है। इस दौरान शहरी इलाकों में बीजेपी ने बीजेडी खासी पटखनी दी थी।
बीजेपी के हैदराबाद का रण इसलिए ज्यादा जरूरी हो गया है क्योंकि पार्टी इसी तरह से ओडिशा के पंचायत चुनाव में जीतने का फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिल चुका है। इस दौरान शहरी इलाकों में बीजेपी ने बीजेडी खासी पटखनी दी थी।
वहीं आगामी पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले हैदाराबाद के निगम चुनाव को लेकर भी बीजेपी और टीएमसी नेताओं के बीच जुबानी जंग जारी है। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी कह चुकी है कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में किसी निकाय चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों को बैठक करते हुए नहीं देखा। बीजेपी का इस तरह बैठकें करना उनके हार के डर को दर्शाता है।
ऐसे में इस चुनाव को जीतकर बीजेपी आगामी बंगाल चुनाव के लिए अपनी सीधा संदेश देने के मूड में है। ये है बीजेपी और एआईएमआईएम की स्थिति
हैदराबाद नगर निगम की कुल 150 निकाय सीटों के लिए 1 दिसंबर को मतदान होगा। पिछले चुनाव में बीजेपी को सिर्फ चार और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44 सीटें मिलीं थीं।
हैदराबाद नगर निगम की कुल 150 निकाय सीटों के लिए 1 दिसंबर को मतदान होगा। पिछले चुनाव में बीजेपी को सिर्फ चार और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44 सीटें मिलीं थीं।