कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार से मुलाकात
कर्नाटक ( Karnataka Crisis ) के बागी विधायकों ने गुरुवार को बेंगलुरु में कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ( KR Ramesh Kumar ) से मुलाकात की। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के बागी विधायकों को निर्देश दिया था कि वो शाम 6 बजे के बाद स्पीकर से मिलकर फिर से अपना इस्तीफा सौंपें।
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संवैधानिक संकट जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए
वहीं, कर्नाटक ( Karnataka Crisis ) के राजनीतिक हालात पर केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ( Union Minister Pralhad Joshi ) ने कहा है कि सभी बागी विधायक स्पीकर से मुलाकात कर चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने फिर से अपने इस्तीफे स्पीकर को सौंप दिए हैं। अब स्पीकर को जल्द फैसला लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में यह संवैधानिक संकट जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए।
क्या कहता है दल बदल कानून
इसी बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष अपने विधायकों के खिलाफ दलबदल कानून (एंटी डिफेक्शन लॉ) लागू कर उन्हें अयोग्य घोषित कर पाएंगे? राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कांग्रेस और जनता दल-सेक्युलर (जद-एस) के बागी विधायकों को विरोधी दलबदल कानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है। क्योंकि उन्होंने अपने इस्तीफे विधायक के तौर पर विधानसभा अध्यक्ष को सौंपे हैं, न कि पार्टी सदस्य के तौर पर पार्टी को।
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जद-एस के पास 37 विधायक थे
( Karnataka Crisis ) विशेषज्ञों के अनुसार, अयोग्यता का प्रश्न तब उठ सकता है अगर वे अपनी-अपनी पार्टियों के व्हिप की अवहेलना करते हैं। पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस के 13 जबकि जद-एस के तीन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया, जिससे गठबंधन सरकार संकट में पड़ गई है। इस्तीफे से पहले 225 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस के पास अध्यक्ष सहित 79 जबकि जद-एस के पास 37 विधायक थे।
बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 105
अगर अध्यक्ष 16 विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार कर लेते हैं, तो विधानसभा की प्रभावी ताकत 225 से घटकर 209 हो जाएगी और बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 105 हो जाएगा जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन 100 पर सिमटकर अल्पमत में आ जाएगा।
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इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार को सौंपे
कर्नाटक ( Karnataka Crisis ) उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रवि नाइक ने बताया, “विधायकों ने अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार को सौंपे है। उन्होंने पार्टी को इस्तीफे नहीं दिए हैं। इसलिए दलबदल कानून उन पर लागू नहीं होगा और उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।”
10वीं अनुसूची की अवहेलना
नाइक ने कहा कि अध्यक्ष इस्तीफे को स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं, अगर विधायकों ने दल-बदल कानून या संविधान की 10वीं अनुसूची की अवहेलना नहीं की हो। उन्होंने बताया, “विधायकों को इस्तीफा देने से पहले व्हिप नहीं सौंपे गए थे।
विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग
कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता सिद्धारमैया ने सोमवार को अध्यक्ष को याचिका दायर कर बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की, ताकि वह अनुच्छेद 164-1 (ख) के तहत 6 साल के लिए मंत्री न बन सकें या चुनाव न लड़ सकें। इस पर नाइक ने कहा कि इसके प्रावधान उन पर लागू नहीं होंगे, जैसे कि उन्हें पार्टी से निष्कासित नहीं किया गया है, और न ही उन्होंने व्हिप को खारिज किया है।
क्या है 10वीं अनुसूची या अनुच्छेद 164-1 (ख)
नाइक ने कहा, “बागियों ने दावा किया है कि उन्होंने केवल अपने संबंधित विधानसभा क्षेत्रों से इस्तीफा दिया है, जहां से वे मई 2018 के विधानसभा चुनावों में चुने गए थे। उन्होंने अपनी पार्टियों (कांग्रेस या जद-एस) से इस्तीफा नहीं दिया है। इसलिए अध्यक्ष भी 10वीं अनुसूची या अनुच्छेद 164-1 (ख) के प्रावधानों को लागू करने में सक्षम नहीं होंगे।”
प्रकृति की पहचान करने की शक्ति नहीं
वहीं विख्यात संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 101 के अनुसार, विधानसभा में विधायकों द्वारा दिए गए इस्तीफे के मूल में कारण की प्रकृति की पहचान करने की शक्ति नहीं है