भारत में हम जब राजनीतिक हिंसा की बात करते हैं तो जेहन में सबसे पहले केरल और पश्चिम बंगाल राज्य ही ध्यान में आते हैं। केरल में आरएसएस, भाजपा और सीपीएम के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झडपें होती रही हैं जिसमें कई लोगों ने जान गंवाई है। लेकिन अभी बीते दिनों तेजी से बढ़ी राजनीतिक हिंसा और हत्याओं के कारण केरल की वामपंथी सरकार को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है। केरल और पश्चिम बंगाल में लगातार जारी राजनीतिक हिंसा गंभीर चिंता का विषय है।
हिंसा की घटनाओं में दोनों राज्यों में हजारों लोगों ने अपना जीवन खो दिया है। केरल और पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का मूल कारण सत्ताधारी पार्टी द्वारा विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना है। केरल में जब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्य विपक्षी दल कम्यूनिस्ट पार्टी थी और भाजपा भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगी थी तो वहां भी कांग्रेस औऱ भाजपा के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। पश्चिम बंगाल में में भी स्थिति लगभग एक जैसी है। जब पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार थी तब मुख्य विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को मुख्य रूप से निशाना बनाया जा रहा था। बंगाल में भी स्थिति जस की तस अब जबकि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और मुख्य विपक्षी दल कम्यूनिस्ट पार्टी है और भाजपा भी वहां मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रयासरत है।