मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक सफर में कई बुलंदियों को छुआ। उत्तर प्रदेश की राजनीति के तो वे भीष्म पितामह थे ही, लेकिन केंद्र की राजनीति में भी मुलायम सिंह ने अपना दबदबा कायम रखा था।
हालांकि उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा ही रह गया।
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ऐसा दो बार हुआ जब वे पीएम बनने से चूक गए।
1. एक बार 1996 में मुलायम सिंह यादव का ये सपना अधूरा रह गया। दरअसल उस वक्त लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई थी। बीजेपी के खाते में 161 सीटें आई थीं। अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई जो सिर्फ 13 दिन ही चली। अब सवाल खड़ा हुआ कि नई सरकार कौन बनाएगा?
कांग्रेस के कोटे में 141 सीटें आई थीं। वह खिचड़ी सरकार बनाने के मूड में नहीं थी। तब वीपी सिंह पर सबकी नजरें टिक गई थीं। वह 1989 में मिली-जुली सरकार बना चुके थे। लेकिन, उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया।
इसके बाद मुलायम और लालू प्रसाद यादव का नाम आगे आया। चारा घोटाले के चलते लालू दौड़ से बाहर हो गए। वामदल के बड़े नेता हर किशन सिंह सुरजीत ने मुलायम के नाम की पैरवी की लेकिन, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने मुलायम के नाम का विरोध किया। बाद में देवगौड़ा और आईके गुजराल मंत्रिमंडल में वह रक्षा मंत्री रहे।
मुलायम ने खुद इस बात को स्वीकार किया था, कि वह प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। लेकिन, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्र बाबू नायडू और वीपी सिंह के कारण प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।
चरण सिंह बुलाते थे नन्हें नेपोलियन
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक दांवपेंच समझना हर किसी के बस की बात नहीं थी। अपने ठेठ देसी अंदाज के चलते वे लोगों के चहीते तो थे ही, साथ ही राजनेताओं के बीच भी उनकी छवि अच्छी थी।
चरण सिंह मुलायम को ‘नन्हा नेपोलियन’ कहकर बुलाते थे। क्योंकि मुलायम सिंह ने राजनीति के अखाड़े में कई दिग्गजों को धोबी पछाड़ खिलाई थी।
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