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बैंगलोर

वनवासियों के भविष्य पर लटकती तलवार

शीर्ष अदालत के फैसले पर निर्भर भविष्य

बैंगलोरJun 21, 2021 / 04:41 pm

Sanjay Kulkarni

वनवासियों के भविष्य पर लटकती तलवार

वनवासियों के भविष्य पर लटकती तलवार

बेंगलूरु. कोरोना महामारी बीच राज्य के 6 लाख से अधिक वनवासियों का भविष्य शीर्ष अदालत के फैसले पर निर्भर है। जुलाई माह के अंत में या अगस्त माह के पहले सप्ताह में शीर्ष अदालत इस याचिका की सुनवाई करने जा रही है। अगर शीर्ष अदालत का फैसला विपरीत गया तो शिवमोग्गा, उत्तर कन्नड़, चिकमगलूरु, मैसूरु, कोडग़ु, चामराजनगर तथा हासन जिलों के 6 लाख से अधिक वनवासियों को वनक्षेत्र से हटाया जाना अनिवार्य होगा।
राज्य वनवासी संघर्ष समिति के अध्यक्ष रविंद्र नायक के अनुसार हाल में 7 जुन को शीर्ष अदालत ने एक मामले में हरियाणा के विभिन्न जिलों के वनक्षेत्र में बनाए गए 10 हजार से अधिक मकानों को अवैध घोषित कर ढहाने के निर्देश दिए हैं। अब कर्नाटक के वनवासियों को भी डर सता रहा है कि क्या उनका हाल भी हरियाणा के वनवासियों जैसा होने वाला है।
राज्य सरकार की ओर से अदालत में दखिल किए गए हलफनामे के मुताबिक विभिन्न जिलों में 6 लाख से अधिक वनवासियों ने वनक्षेत्र में आवास बनाए हैं। 2 लाख्र 40 हजार वनवासियों ने उनके मकानों को वैध घोषित करने के लिए आवेदन दिया है। इन आवेदनों का निपटारा शेष है।
वनक्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर देश के विभिन्न 9 स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) ने वर्ष 2008 में याचिकाएं दायर की हैं। शीर्ष अदालत इन याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से भी अदालत में हलफनामा दायर किया गया है।
शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी वर्ष 2019 में जारी एक अंतरिम आदेश के तहत जुलाई के अंत तक वनक्षेत्र में से तमाम अवैध निर्माण हटाने के निर्देश दिए थे। इस बीच केंद्र सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर वनक्षेत्रों की समीक्षा के लिए अदालत से अधिक समय देने की मांग की थी।
राज्य वनवासी संघर्ष समिति का कहना है कि राज्य में वनक्षेत्र में निर्मित वनवासियों की भूमि तथा आवास वैध घोषित करने की मांग को लेकर लाखों आवेदनों का निपटारा अभी तक नहीं किया गया है। अब वनवासियों को वनक्षेत्र से बेदखल किए जाने का डर सता रहा है।
अदालत में वनवासियों का पक्ष रखने के लिए राज्य सरकार की ओर से अभी तक कोई तैयारियां नहीं की गई है। समिति चाहती है कि राज्य सरकार उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनविदों से परामर्श करे।
शीर्ष अदालत में वनवासियों की वास्तविक स्थिति की जानकारी देने के लिए एक हलफनामा दायर करे। वनवासियों के आवेदनों का निपटारा तेजी से करने के लिए इन जिलों में उच्चाधिकार समिति का गठन करें। अगर अदालत वनवासियों के विस्थापन का आदेश देती है तो राज्य सरकार वनवासियों के पुनर्वास की व्यवस्था करे तथा वनवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक स्पष्ट नीति बनाए।
विधानसभा के अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी का कहना है कि कर्नाटक तथा हरियाणा की स्थितियां भिन्न होने के कारण शीर्ष अदालत के इस फैसले का राज्य के वनवासियों पर कोई असर नहीं होगा।
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