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प्रतापगढ़

राजस्थान में यहां होती है खंडित शिवलिंग की पूजा, मिलता है पाप मुक्ति प्रमाण पत्र

गौतमेश्वर तीर्थ में कई वर्षों से पापमुक्ति प्रमाण मिलता है। जो भारतवर्ष में यहीं दिया जाता रहा है। जो गौतमेश्वर अमीनात कचहरी की ओर से जारी किया जाता है। गौतमेश्वर की पूजा-अर्चना कर रहे घनश्याम शर्मा ने बताया कि जब भी किसी व्यक्ति से जीव हत्या हो जाती है।

प्रतापगढ़May 22, 2024 / 03:10 pm

Akshita Deora

दक्षिणी राजस्थान के कांठल, वागड़, मालवा समेत आसपास के इलाकों में कांठल का हरिद्वार कहा जाने वाला गौतमेश्वर तीर्थ अति प्राचीन है। अरावली की उपत्यकाओं में अवस्थित गौतमेश्वर तीर्थ में पापमुक्ति प्रमाण मिलता है। जो कहीं भी देखने को नहीं मिलती है। पूर्णत: प्राकृतिक परिवेश में अवस्थित गौतमेश्वर तीर्थ गत वर्षों से कई विकास कार्य हुए है। इससे यहां प्राकृतिक सौंदर्य निखर रहा हैै।
गौतमेश्वर तीर्थ में कई वर्षों से पापमुक्ति प्रमाण मिलता है। जो भारतवर्ष में यहीं दिया जाता रहा है। जो गौतमेश्वर अमीनात कचहरी की ओर से जारी किया जाता है। गौतमेश्वर की पूजा-अर्चना कर रहे घनश्याम शर्मा ने बताया कि जब भी किसी व्यक्ति से जीव हत्या हो जाती है। तो उसका निवारण यहां पापमोचनी गंगाकुंड में स्नान, गौतमेश्वर की पूजा-अर्चना से होता है। इसके बाद उसे यहां से निर्धारित शुल्क 12 रुपए जमा कराने पर पापमुक्ति प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है। इस प्रकार का प्रमाण-पत्र कई वर्षों से जारी किया जा रहा है। बताया जाता है कि यहां गौतम ऋषि को लगे गौहत्या के पाप का निवारण गंगाकुंड में स्नान करने से हुआ था। आज तक यहां जीवों की हत्या का पाप से मुक्ति मिलती है। गिलहरी, टिटहरी, गो आदि की हत्या होने पर यहां प्रायश्चित कराया जाता है। इस प्रमाण पत्र से जीव हत्या के प्रायश्चित के रूप में विभिन्न समाजों में भी मान्यता दी हुई है।

मान्यता: शृंग ऋषि की तपोभूमि

सदियों पुराना तीर्थ गौतमेश्वर ऋषियों की तपोभूमि और पाप निवारण का प्रमुख स्थल माना जाने वाला है। कहा जाता है कि यह स्थान शृंग ऋषि की तपोस्थली भी रहा है। यहां पापमोचनी गंगाकुड के बाहर बोर्ड लगा हुआ है। जिस पर शृंग बोध से ली गई सूचना अंकित है। इसके तहत इस पर अंकित है कि यह स्थान त्रेता युग में महर्षि शृंग की तपोस्थली रही है। उनके तप से यहां गंगा प्रकट हुई। इस पवित्र कुंड में स्नान करने से न्यायशास्त्र के प्रणेता महर्षि गौतम को गो-हत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त हुई थी।
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उपत्यकाओं में आदिकाल की गुफाएं

पहाड़ी से नीचे उतरने पर एक तरफ आदिकाल की गुफाएं भी हैं। इस गुफा में महांकाल के मंदिर के पीछे डेढ़ फीट की ईंटों का गुफाद्वार भी है। इससे प्रतीत होता है कि यह स्थान नाथ योगियों की तपोस्थली रहा है।

यहां लगता है वैशाखी पूर्णिमा पर मेला

गौतमेश्वर महादेव मंदिर परिसर में प्रति वर्ष वैशाखी पूर्णिमा पर सात दिवसीय मेले का आयोजन होता है। इस वर्ष यह मेला 19 मई से 26 मई तक आयोजित हो रहा है। जिसमें बड़ी संया में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।

शिवजी के साथ अन्य मंदिर

गौतमेश्वर में शिवजी के साथ अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर है। पापमोचनी गंगाकुंड के पास ही एकलिंग का मंदिर है। कालिका माता का मंदिर भी यहां भैरव घाटी के पास है। जो करीब सात फीट की है। पहाड़ में हनुमानजी का मंदिर है। यहीं सामने सूर्यनारायण का मंदिर भी काफी प्राचीन है। गौतमेश्वर मंदिर के पास ही अन्नपूर्णा माता का मंदिर भी है। वहीं मुय मंदिरों के आगे गणेशजी की प्रतिमाएं विराजित है। इसी प्रकार मंगलेश्वर महादेव मंदिर के पास ही गोस्वामी आश्रम है। यहां कई वर्षों से अखंड धूणी जल रही है। सामने सूर्य कुंड है। पहाड़ों से रिसता पानी भरता है।
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कई किंवदंतियां है प्रचलित

यहां गौतमेश्वर मंदिर के बाहर एक शिलालेख भी लगा हुआ है। जो सन 1562 ई. का है। इतिहासकार मदन वैष्णव के अनुसार कहा जाता है कि मुगल शासक ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था। इस दौरान शिवलिंग पर प्रहार करने से इसमें दरार पड़ी और अंदर से मधुमक्खियों का झुंड निकला। झुंड ने उसकी सेना पर हमला कर दिया। बाहर एक शिला भी गिर गई, जिसमें कई सैनिक दब गए। इसके बाद मुगल शासक ने प्रभावित होकर यहां मंदिरों का निर्माण कराया। जो मुगल शैली में बने हुए है। बाहर एक शिलालेख भी लगाया। जिस पर अंकित कराया कि कोई भी इन मंदिरों में तोड़फोड़ नहीं करेगा। किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुंचाएगा। गौतमेश्वर और मंगलेश्वर मंदिर तक जाने के लिए श्रद्धालु गंगाकुंड में स्नान के बाद परिक्रमा मार्ग से होते हुए गणेश घाटी तक जाते है। मुय द्वार से परिक्रमा मार्ग पथरीला है। ऐसे में श्रद्धालुओं को नंगे पैर चलना मुश्किल भरा है। इस मांग को देखते हुए इस पर सीसी कार्य की स्वीकृति हुई थी।

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