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पांच दिवसीय मां काली के इस अद्भुत स्वरूप के पहले दिन मां काली अपने अद्भुत श्रृंगार के साथ काली स्वांग करते हुए भक्तो को दर्शन दिया। कहा जाता है कि रामायण में एक विशेष काली स्वांग का प्रसंग है। जिसमें मां काली का स्वरूप बना कर हांथ में भुजाली लिए हजारों की भीड़ में निकलती है। जानकारों के मुताबिक यह दृश्य रामायण के प्रसंग से जुड़ा है जिसमें सुपर्णखाकि नाक काटने के बाद खरदूषण अपनी सेना लेकर भगवान राम से युद्ध करने निकल पड़ता है।जिसमें कहा जाता है कि माता सीता ने खुद मां काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे आगे चलती है और वह स्वयं खरदूषण का वध करती हैं।प्रयागराज में काली स्वांग की परंपरा सैकड़ों बरस पुरानी है। काली स्वांग को देखने के लिए यहां दूर.दूर से लोग इकट्ठे होते हैं आधी रात के बाद काली स्वांग का दृश्य देखने को मिलता है।
इस दौरान मां काली के रौद्र रूप को शांत करने के लिए काली मां के पुजारी उन्हें लोंग नींबू जायफल की बलि देकर शांत करते हैं ।इस दौरान उनके भव्य स्वरूप का दर्शन करने के लिए हजारों की तादात में लोग एकत्रित होते हैं। मानयता के मुताबिक़ काली का पातर वही बनता निभाता है जिस पर देवी की कृपा होती है। इसके लिए छह माह पूर्व से नियम संयम शुरू किया जाता है। हर दिन काली की मंदिर में उनको प्रसन्न करने किये उनकी आधी रात के बाद आराधना करनी होती है जिसके बाद माँ काली का आशीर्वाद मिलने के बाद ही उनकी पूजा और काली स्वांग करने के लिए आदेश दिया जाता है।