ननद-भौजाई का रोचक मुकाबला
बेहद रोचक मुकाबले की वजह है ननद-भौजाई का आमना-सामना। एनसीपी(शरद पंवार) ने तीन बार की सांसद और शरद पंवार की बेटी सुप्रिया सुले को प्रत्याशी बनाया है । राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(शरद गुट) से है जिनका चुनाव चिन्ह तुहारी माणस है।उपमुख्यमंत्री अजीत पंवार की पत्नी सुनेत्रा पंवार राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी से प्रत्याशी है। जिनका चुनाव चिन्ह घड़ी है। सुनेत्रा का कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है, लेकिन वे समाजसेवा में रही है।
चाचा की अंगुली छोड़, भतीजा उठा रहा सवाल
शरद पंवार के भतीजे है अजीत पंवार। वे चाचा शरद पंवार की अंगुली पकड़कर बड़े हुए और 60 पार की उम्र तक राजनीति में साथ रहे, लेेकिन चंद महीने पहले चाचा-भतीजा में रार पड़ गई।..अंदर की अंदर अजीत को यह बात लगी कि जरा सा तुमसे क्या आगे बढ़ा हूं, तुम्हारी आंखों में चुभने लगा हूं। भाजपा ने अजीत की महत्वाकांक्षा को ताड़ लिया और इधर परेशान अजीत ने चाचा की अंगुली छोड़ दी। वे शरद पंवार से अलग होकर महायुति संगठन में शामिल हुए और एनसीपी को भाजपा के साथ जोड़ लिया।कार्यालय में भाजपा के झण्डे-बैनर
शरद पंवार को एनसीपी से अलग एनसीपी (शरद) नई पार्टी बनानी पड़ी। उनको नया निशान तुरही माणस मिला और उन्होंने महाअघाड़े गठबंधन में खुद को शामिल किया है। बारामती के एनसीपी के कार्यालय में अब शरद पंवार नहीं है। यहां अजीत पंवार का कार्यालय चल रहा है। अब यहां भाजपा के झण्डे और बैनर लगे हुए है। जिनके साथ उनका निशान घड़ी भी है। यहां बैठे गेटमैन सदाशिव गायकवाड़ कहते है, पहले तो साहेब (शरद पंवार)और दादा (अजीत पंवार) दोनों आते थे, अब तो दादा ही है।कोई बड़ी सभा नहीं
बारामती में भले ही घर में घुसकर शरद पंवार पर मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक की है लेकिन अभी तक बारामती में कोई बड़ी सभा नहीं की है। यहां स्टार प्रचारक भी दोनों चाचा-भतीजा ही है। दोनों पंवार ने अपना पूरा पॉवर यहां लगा दिया है।रोचक होगा मुकाबला
यहां मुकाबले की रोचकता अब हर मुंह चढ़ गई है। असल में पंवार परिवार के पॉवर हाऊस बारामती को 38 साल से कोई नहीं भेद पाया है,लेकिन जब सामने भी पंवार आ गए तो रोचकता बढ़ गई है। अजीत पंवार ही इस चुनाव से पहले तक शरद पंवार के फील्ड के हरावल दस्ते के सेनापति थे और अब हराने वाले सेनापति की भूमिका में आ गए है। मतदाता दोनों के करीब रहा है। एकतरफ अब अजीत पंवार का पॉवर है तो दूसरी तरफ शरद पंवार के प्रति सहानुभूति की लहर। लिहाजा सुनेत्रा(वैनी) और सुप्रिया(ताई) के बीच पॉवर पॉलिटिक्स बारामती से दिल्ली तक की नजर में है।धरातल के हालात
पुणे जिले का ही शहर है बारामती, लेकिन लोकसभा की अलग सीट हो गई है। लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा की सीट है दांड, बरामती, पुरदर, भोर, खड़कवासला। पुणे से यह लोकसभा सीट अलग होकर बनी है। पुणे से बारामती सोलापुर हाईवे के रास्ते निकलेंगे तो विकास ही विकास नजर आएगा लेकिन गांव की सड़़कों से दांड इलाके से चलेंगे तो उबड़-खाबड़ और कच्चे रास्ते बताएंगे कि हाईवे के हाथी के दांत दिखाने के थे और गांव के रास्ते खाने वाले दांत है।गांव का नाम रोटी: यहां नहीं पानी
यहां की सबसे बड़ी समस्या पूरे इलाके की पानी की है और देखिए मैं भी ऐसे गांव पहुंच गया जिसका नाम रोटी है। रोटी एक किलोमीटर दूर थी तभी से थोड़ा दिलचस्पी जगी। यहां गांव में मिले युवराजसिंदे, उनकी मां लक्ष्मीबाई सिंदे और और पूरा परिवार। ये लोग एक टैंकर से ड्रम में पानी भर रहे थे, पूछा तो लक्ष्मीताई बोली पानी नहीं है। बहुत मुश्किल होती है।युवराज सिंदे कहते है बारिश होती है तो पानी नसीब होता है। इसके बाद प्रतिदिन कम से कम 200 रुपए एक परिवार पानी के खर्च करता है। पानी की समस्या का समाधान किसी ने नहीं किया, इस बार बड़ मुद्दा पूरे लोकसभा क्षेत्र में है। आगे माळेगांव में सताराम घुमटकर मिले जो पढ़े लिखे है, वे आंकड़ों से ताईद करते है कि इन्दापुर में 24, दांड़ में 13, पुरदर में 09, भोर में 12 और बारामती के 22 गांव में पानी का कोई प्रबंध नहीं है। यह सवाल राष्ट्रवादी कांग्रेस(अजीत) गुट के संभाजी होल्कर कहते है कि हमने अब तीन बड़े डेम बन रहे है और इसके बाद इसका समाधान हो होगा।सातवीं के बाद पढ़ाई दूर
खुरगांव, भालगांव, भण्डालवाड़ी से आगे विट्ठलवाड़ी तक बढ़े। यहां सुबह मजमा जमा था। विलासराव के साथ में बैठे चुनावी चर्चा ही कर रहे थे। पानी के बाद समस्या यहां शिक्षा की है। बड़े शहरोंं में एज्युकेशन हब हो गया है लेकिन गांव में सातवीं तक के स्कूल है और फिर आगे बढऩा है तो 6 से 12 किमी तक कस्बों में जाना होता है। विलासराव कहते है बेटियों के लिए किराया नहीं लगता है लेकिन असुरक्षा का भाव रहता है। बेटों के लिए तो मासिक पास है लेकिन यह भी 250 रुपए तक लग जाता है। एज्युकेशन में 12 वीं तक का स्कूल गांव में हों तो ठीक है।सीट हिस्ट्री
- 1991 में यहां अजीत पंवार लोकसभा चुनाव जीते थे। 1991 में उपचुनाव हुआ,इसमें शरद पंवार कांग्रेस से जीते। 1994 में फिर उपचुनाव हुआ, कांग्रेस से बापूसाहेब थिटे सांसद बने। 1996 में कांगे्रस से शरद पंवार सांसद बने। 1998 में भी शरद पंवार कांग्रेस से सांसद बने। 25 मई 1999 को एनसीपी(राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक पार्टी) बनी। शरद पंवार ने पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते। 2004 में पंवार यहां से छठी बार संासद बने। छह बार के सांसद रहने क बाद 2009 में शरद पंवार ने अपनी बेटी सप्रिया सुले को प्रत्याशी बनाया। सुप्रिया 2009, 2014 और 2019 लगातार तीन बार यहां से सांसद है।
सात दिन शेष - 07 मई को यहां पर चुनाव है। कुल 38 प्रत्याशी मैदान में है।लोगों का कहना है कि अजीत पंवार उप मुख्यमंत्री है। सत्ता का पॉवर उनके हाथ में है। उनकी पत्नी चुनाव लड़ रही है तो वे इसके लिए जी-जान लगा देंगे।
फैक्ट फाइल - 2019 में राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक पार्टी की सुप्रिया सुले ने भाजपा की कंचन राहुल कूल को 156,274 मतों से हराया और वो तीसरी बार लगातार सांसद बनी
मुद्दे- खेती व पीने का पानी, धनगर आरक्षण,विकास, फसलों का समर्थन मूल्य(विशेषकर प्याज)
जातिगत वोटबैंक- धनगर, मराठा और माळी