बिना रूके धड़धड़ाते हुए निकल गई साउथ बिहार एक्सप्रेस, रुकने के इंतजार में देखते रह गए दर्जनों यात्री तेंदूपत्ता संग्रहण से राजस्व का एक बड़ा हिस्सा शासन को मिलता है। जिसे देखते हुए प्रत्येक वन मंडल को एक लक्ष्य दिया जाता है। जिसको ध्यान में संग्रहण की दशा व दिशा तय की जाती है। अगर बात करे रायगढ़ वन मंडल की तो यहां भी शासन स्तर पर ६० हजार ७०० प्रति मानक बोरा का लक्ष्य दिया गया था। मई के पहले सप्ताह में जब संग्रहण कार्य को शुरु किया गया तो इसका अच्छा रिजल्ट भी मिला, पर समय बितने के साथ ही गुणवत्ता वाले पत्तों का अभाव होने लगा। जिसकी वजह से करीब एक माह के अधिक दिनों तक चले संग्रहण कार्य के बीच विभाग की फाइलों में करीब ५५ हजार १९९ मानक बोरा तेंदूपत्ता का संग्रहण दर्ज हो सका है, जो लक्ष्य से ५ हजार ५०१ मानक बोरा कम है। वहीं प्रतिशत की बात करते तो विभाग करीब ९१ प्रतिशत तेेंदूपत्ता का संग्रहण कराने में सफल हो सकी है।
खास बात तो यह है कि लक्ष्य से पिछडऩे का यह सिलसिला पिछले २-३ साल से जारी है। जिसे देखते हुए शासन ने रायगढ़ वन मंडल के पिछले लक्ष्य ६३ हजार ८०० में से ३१०० मानक बोरा की कमी करते हुए नया लक्ष्य दिया था। पर लाख जतन, जागरुकता की पहल के बावजूद विभाग लक्ष्य से दूर रहा।
तीन समितियों ने संग्रहण का किया विरोध
तेंदूपत्ता संग्रहण के तय लक्ष्य से पिछडऩे की एक वजह तीन गांव के हितग्राहियों द्वारा संग्रहण का विरोध भी था। टारपाली, एकताल, विश्वनाथपाली गांव के हितग्राहियों ने अपनी मागों को पूर्ति होने तक संग्रहण कार्य से दूरी बनाई थी। जिसकी वजह से सैकड़ों मानक बोरा का संग्रहण प्रभावित हुआ है। विभागीय अधिकारी भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं।
बारिश ने भी किया प्रभावित
तेंदूपत्ता संग्रहण के कुछ दिन पहले दो साल के अंतराल के बाद महिला हितग्राहियों को चरण पादुका का वितरण किया गया था। विभाग को इस बात की उम्मीद थी कि चरण पादुका मिलने के बाद महिला हितग्राहियों में संग्रहण को लेकर एक उत्साह आएगा। शुरुआती दौर में यह उत्साह देखने को भी मिला, पर समय बीतने के साथ ही मौसम में अचानक हुए बदलाव व बारिश की वजह से संग्रहण कार्य के साथ पत्तों को सुखाने में भी काफी परेशानी हुई।