जिम्मेदारों से अधिक शहर प्रेमियों को हरियाली की चिंता, पढि़ए रेसिडेंसियल बिल्डिंग के नाम पर 62 वृक्षों की कटाई पर लोगों ने क्या कहा…
शहर की हरियाली कम न हो, वन्य प्राणियों यानि कि पशु-पक्षियों से उनका घरौंदा न छिने, लेकिन जिले के जिम्मेदार अधिकारियों और जन प्रतिनिधितयों को इससे कोई वास्ता नहीं
CG Public Opinoin : जिम्मेदारों से अधिक शहर प्रेमियों को हरियाली की चिंता, पढि़ए रेसिडेंसियल बिल्डिंग के नाम पर 62 वृक्षों की कटाई पर लोगों ने क्या कहा…
रायगढ़. जिला प्रशासन सहित अन्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों व पदाधिकारियों को भले ही शहर की हरियाली को लेकर कोई चिंता न हो, लेकिन यहां के पर्यावरण प्रेमी और वन्य प्राणी प्रेमियों इसे लेकर काफी चिंतित हैं। उनका कहना है कि वह चाहते हैं कि शहर की हरियाली कम न हो, वन्य प्राणियों यानि कि पशु-पक्षियों से उनका घरौंदा न छिने, लेकिन जिले के जिम्मेदार अधिकारियों और जन प्रतिनिधितयों को इससे कोई वास्ता नहीं है।
सिंचाई विभाग के पास पीडब्ल्यूडी द्वारा भवन बनाने के 62 पुराने वृक्ष काटे जाने की खबर पढ़ कर उन्होंने न सिर्फ चिंता जताई बल्कि यह भी कहा कि यदि जिम्मेदार अधिकारियों को जरा भी इन वृक्षों को बचाने की चिंता होती तो वह उसे बचा भी लेते और वहां मल्टी स्टोरी विल्डिंग भी बन जाती, लेकिन सब अपना-अपना हित साधने में लगे हैं।
गौरतलब है कि पीडब्ल्यूडी सिंचाई कालोनी के पास पुराना डीएफओ बंगला की जगह न्यायिक विभाग की एक मल्टी स्टोरी रेसिडेंसियल बिल्डिंग बना रहा है। किसी समय यह जमीन हरियाली से ओतप्रोत थी। यहां पक्षियों का बसेरा होता था और लोग यहां सुबह की सैर करते थे।
पंक्षियों के लिए बनवाते हैं पेय पात्र वन्य प्राणी प्रेमी गोपाल अग्रवाल ने इस बारे में बताया कि वह हर साल पक्षियों के लिए मिट्टी के पात्र बनवा कर रखवाते हैं। उन पात्रों में पानी भर दिया जाता है और कुछ अनाज भी छींटा दिया जाता है। इससे पक्षी वहां दाना चुगने के साथ ही पात्र में भरे पानी से अपनी प्यास बुझा लेते हैं। उन्होंने इस साल 1000 से अधिक पात्र बनवा कर रखवाने का बीड़ा उठाया है। गोपाल अग्रवाल ने कहा कि आज पक्षियों की कई प्रजाति खत्म होने के कगार पर है और यह इसलिए हो रहा है कि इंसान पेड़ों की बलि देकर उनके घरौंदे को नष्ट कर दे रहे हैं।
पर्यावरण प्रेमी शिव राजपूत का कहना है कि पर्यावरण को बचाना किसी एक की जिम्मेदारी नहीं है। हर इंसान जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन लेता है और यह आक्सीजन हमें पेड़ों से मिलती है। प्रशासन के वह जिम्मेदार अधिकारी भी इन्हीं पेड़ों की बदौलत जीवित हैं, लेकिन उन्हें यह समझ में शायद नहीं आ रहा है। यदि वह इस सत्य को जानते तो पेड़ों को काटने से बचाने का भरसक प्रयास करते और यदि विकास के लिए पेड़ कटते भी तो पूरी जिम्मेदारी के साथ पौधरोपण कराते और उससे अधिक पौधों को जीवित कर पेड़ बनाकर अपनी सहभागिता अदा करते।
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