अपना 73 वां जन्मदिन मना रहे जोगी बसपा के सहारे सपनो का सौदागर बनने का कर रहे प्रयास
बसपा से गठबंधन कर खुद को जोगी ने भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के सामने खड़ा करने का प्रयास किया है । अगर वह लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन कर जाते हैं तो हो सकता है कि छत्तीसगढ़ के सपनो का यह सौदागर केंद्र में भी अपने सपने बेचने में सक्षम हो जाए।
अपना 73 वां जन्मदिन मना रहे अजीत जोगी लोकसभा चुनावों में बसपा के सहारे सपनो का सौदागर बनने का कर रहे हैं प्रयास
रायपुर. जब से राज्य का गठन हुआ है यहाँ की सियासत जोगी के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। अब जब कांग्रेस रमन सिंह को सत्ता से हटाने में जुटी है तो अजीत जोगी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ गठबंधन कर चुनाव में नया मोड़ ला दिया है।अजित जोगी छत्तीसगढ़ की राजनीति की धुरी है। हर चुनाव में उनका किरदार राजनीति के केंद्र में रहता है।
छत्तीसगढ़ में 29 अप्रैल 1946 में अजीत जोगी का जन्म हुआ। वह पढ़ाई लिखाई में तेज़ थे, सो भोपाल में इंजीनियरिंग किया और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे और फिर रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने भी लगे। वहीं से आगे चल कर पहले आईपीएस हुए और डेढ़ साल बाद आईएएस बन गए ।
उसी समय वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संपर्क में आ गए।1986 के आसपास उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली और सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया।इसके बाद जोगी का राजनीतिक सिक्का चमकने लगा, वह 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इस दौरान वह कांग्रेस में अलग-अलग पद पर कार्यरत रहे, वहीं 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए।
साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो उस क्षेत्र में कांग्रेस को बहुमत था। यही कारण रहा कि कांग्रेस ने बिना कुछ देरी के अजीत जोगी को ही राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। सपथग्रण के समय उन्होंने कहा था की वो सपनो के सौदागर हैं और सपने बेचते हैं। जोगी 2003 तक राज्य के सीएम रहे लेकिन उसके बाद हुए चुनावों में भाजपा सत्ता पर काबिज हो गयी। बाद में जोगी की तबीयत खराब होती रही और उनका राजनीतिक ग्राफ भी गिरता गया।
लगातार वह पार्टी में बगावती तेवर अपनाते रहे और अंत में उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली और 2016 में कांग्रेस से बगावत कर अपनी अलग पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से गठन किया था। जबकि एक दौर में वो राज्य में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे।
छत्तीसगढ़ के चुनावों में पहली बार अपनी पार्टी बनाकर मैदान में उतरे पूर्व मुख्यमंत्री और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) सुप्रीमो अजीत जोगी का जादू चल गया। किंग बनने का सपना देख रहे जोगी किंग मेकर भी भले न बन पाए हों, लेकिन बसपा के साथ किए गए उनके गठबंधन ने 7 सीटें दिला दीं।
अब लोकसभा चुनावों में भी वह बसपा के साथ गठबन्धन कर चुनाव लड़ रहे हैं और राजनितिक विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं की इस चुनाव में वो महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं हालाँकि उन्होंने चुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं बल्कि बसपा को अपना समर्थन दिया है।बसपा से गठबंधन कर खुद को उन्होंने भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के सामने खड़ा करने का प्रयास किया है अगर वह लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन कर जाते हैं तो हो सकता है की छत्तीसगढ़ के सपनो का यह सौदागर केंद्र में भी अपने सपने बेचने में सक्षम हो जाए।
अजीत जोगी बहुत ही प्रतिभावान व्यक्ति हैं, उनमे नेतृत्व करने का गुण शुरू से ही था लेकिन प्रतिभा और नेतृत्व से कहीं ज़्यादा उनमें जुगाड़ और तिकड़म भिड़ाने के गुण हैं।उनको क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि जब वह तिकड़म भिड़ाने पर आते हैं तो संबंधों, सदाशयता और यहां तक कि क़ानून-व्यवस्था की भी परवाह नहीं करते।
तिकड़म में ऐसी बारीकी कम ही देखने को मिलती है कि राज्यसभा के कार्यकाल के दौरान रविवार को अजीत जोगी प्रार्थना करने उसी गिरजाघर जाते थे जिसमें सोनिया गांधी जाती थीं हालांकि वह दिल से कितने ईसाई हो पाए, कहना कठिन है क्योंकि 12वें लोकसभा के चुनाव से पहले उनसे पूछा कि रायगढ़ ही क्यों, तो उन्होंने कहा, “आज सुबह पूजा करते हुए देवी से पूछा तो उन्होंने यही कहा.”
अजित जोगी के पिता ने ईसाई धर्म धारण कर लिया था जो अजित जोगी के लिए आगे चलकर मुसीबत का कारण भी बना। इससे उनकी जाति को लेकर भी विवाद हुआ क्योंकि वो खुद को आदिवासी बताते हैं। छत्तीसगढ़ में जोगी जिस परिवार से आते हैं वह दरअसल अनुसूचित जाति में है और अजीत जोगी के पास आदिवासी होने का प्रमाण पत्र भी है।
हालाँकि उनपर आरोप है की यह प्रमाण पत्र तिकड़म से लिया गया है जिससे कि वह अनुसूचित जनजाति से होने का फ़ायदा ले सकें, बच्चों को आरक्षण आदि का फ़ायदा मिल सके।अजित जोगी के पिता ने ईसाई धर्म धारण कर लिया था और अनुसूचित जाति का कोई व्यक्ति यदि धर्म परिवर्तन कर ले तो वह आरक्षण की पात्रता खो देता है। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
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