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रायपुर

रावन के किसस-किसम के पीरा

गोठ के तीर

रायपुरOct 08, 2019 / 04:50 pm

Gulal Verma

रावन के किसस-किसम के पीरा

रावन के किसस-किसम के पीरा

द सहरा के दिन रावन ल मारे-बारे खातिर वोकर पुतरा बनाय बर अपन संगवारी संग कइ दिन ले भीड़े रहेंव। जांगर के टूटत ले रात दिन रावन बनई के काम ल करत करत रातकुन कब नींद आगिस मोला पता नइ चलिस। नींद म रहेंव, तभे हमर घर के बाहिर म होवत हल्ला-गुल्ला के मारे मोर नींद ह उचट गिस। मेहा आंखी-कान ल रमजत घर ले निकलेंव। त देखेंव, किसिम -किसिम के अड़बड़ कन रावन के पुतरामन सकलाय रिहिन। अउ अपन-अपन पारा-मोहल्ला के मनखेमन के ऊपर गुस्सा उतारत कोसत रहिन।
मेहा ऐला देख के बख खा गेंव। अउ कान लगा के उंकर गोठ-बात ल सुनेंव। त बावनपारा के रावन कहत रहय कि हर बछर दसहरा आथे अउ हमर पुतरा बना के वोला मारे-बारे जाथे। अइसन बेरा म रावन मरइया मनखे के भीतर म नदिया मा आय पुरा के पानी के लहरा कस बीरता के लहरा मारत रहिथे। जेला देखबे ते खाली एकेच बात ल घोर-घोर के कहिथें। दसहरा ह बुरई म अच्छाई के जीत आय। अनियाय म नियाय के जीत आय। अतेक सुंग्धर संदेसा ल अपन मुंह ले निकालत-निकालत मनखे भूला जाथे कि वोहा खुदे रोज-रोज कई किसिम के अनियाय अउ बुरई के कारज म बूढ़े रहिथें।
बावनपारा के रावन के गोठ ल सुनके ठेठवारपारा के रावन ह गरजत बोलिस-ए मनखेमन ल का ये पता नइये कि असल रावन ल तो राजा राम ह मारे रहिस। जेला मरियादा पुरसोत्तम केहे जाथे। त रावन के पुतरा ल मरइया मनखेमन ल थोर-बहुत तो मरियादा ल अपन भीतर बनाके रखे बर चाही। तभे तो रावन मारे के हक हे। अउ नइ त रावन के निंदा करइया मनखेमन ल धिक्कार है। इही ल कहिथें- ‘सूपा कहे चलनी ल की तोर देह म तो छेदा-छेदा भराय हवय।Ó
अतका सुनके बनियापारा के रावन अपन दुरदसा ल गोहरावत बताइस- काला गोठियाबे संगवारी हो। मोर तो मुड़ी ल कागज, कमचील अउ आंटा के लुगदी के लेपन म चिपका के बनाके सुखोय बर राखें रिहिन। उही बेरा म एकठिन गोल्लर ह अइस अउ मोर दसों मुड़ी ल एक-एक करके चगलना सुरू कर दीस। पहिली तो मेहा पीरा के मारे कलपत रहेंव। फेर, सोचेंव- पापी मनखेमन के हाथ ले बरे ले बढिय़ा तो भगवान भोले भंडारी के गोल्लर के खुराक बनई बने तकदीर के बात आय। पहिली तो वोकरर पेट म जाके भूख मिटाऊं, तेकर पाछू गोबर बनके निकलहूं। त छेना बनके कोनो गरीब के घर के चूल्हा म बरत वोकर दार चाउर चुरोये के काम आहूं। अउ नइ त खातू बनके किसान के खेत म अन्न उपजाहूं।
इही बेरा म कोसटापारा के दसानन महाराज अपन ललियाये अउ फूले-फूले आंखी-कान ल सहलावत आंसू ढरकावत बोलिस- मोर तो अउ करलई हे भइया हो। मोहु ल बने रंग-बिरंगी कागज ले समरा के लुगदी म चिपका के सुखोये बर राखे रहिन हें। फेर पानी गिरई के मारे सुखाय नइ पावत हंव। भांठा भुइंया म परे हंव। ऐकर फायदा उठावत माछी-चांटी अउ मुसवामन ह मोर ऊपर झूम के मोर आंखी, कान, नाक ल चूहक -चाब डारिन। हमन तो एके घांव सीता माई के हरन करे रहेंन। फेर, हमन ल मरइया-बरइया मनखेमन तो रोजे दाई दीदी बहिनी महतारीमन के हरन करत हवंय। चारों मुड़ा माईलोगनमन के बेइज्जती करत हवंय। ऐमन ल राजा राम कब मारही? कोन बनही भुइंया के राजा राम? जउन ह माईंलोगनमन के पीरा ल हरही?
तभे एकठिन नेता कस दिखथ रावन ह कड़कदार अवाज म बोलिस- मनखेमन रावन के पुतरा ल तको अमीरी अउ गरीबी म बांटे कस बना देय हावंय। गरीब मोहल्ला के रावन ल देखबे त पेचका, टेटका कस लूलवा बना देय हावंय अउ अमीर मोहल्ला के रावन ल देखबे त चकमक- चकमक करत कपड़ा-लत्ता म सजे हवय। ऐला देख के तो अइसे लागत हे कि हमर दसा गरीबी रेखा के नीचे वाले रावन अउ गरीबी रेखा के ऊपर वाले रावन कस होगे हवय।
ऐला सुनके एकठिन डोकरा कस दिखइया रावन जउन ह गांधी बिरिद्ध आसरम के रावन रहिस अपन पीरा ल बतावत बोलिस- बड़े-बड़े फटाका ल हमर मुंह अउ पेट म मनखेमन गोंज के हमन ल बार देथें। ए बेरा म वोमन भूला जाथें कि रावन ल नइ, बल्कि अपन रुपिया ल बारत हवंय। थोरकिन सोचव तो संगवारी हो। भगवान राम अउ वोकर बानर सेना ह हमन ल अइसन मार नइ मारे रहिन। ये हिसाब म मनखेमन ह सुग्घर परंपरा ल बिगाड़त हवंय। अपन बेंदरा बिनास करत वोमन बने -बने तीज-तिहार के रंग ल बदरंग करत जावत हें। हे राम मनखेमन के बिगड़े मति ल कब सुमति कोती ले जाबे। वोमन ल कब बताबे कि अतियाचार ल मारे बर हे, अतियाचारी ल नइ।
रावन के अइसन पीरा सुन के सोचेंव कि सही म राजा राम कस मरियादा ल बना के दसहरा परब ल मनाबो, तभे सबके भलई हवय। असल रीति-रिवाज अउ संस्करीति ल बना के राखे म सबो के सुख समाय हवय।
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