गौरतलब है कि ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश में वन भैसें विलुप्ति की कगार पर हैं। छत्तीसगढ़ ने राज्य गठन के बाद 2001 में संरक्षण के उद्देश्य से इसे राज्य पशु का दर्जा दिया। 20 सालों में इनकी संख्या 20 भी नहीं पहुंची है। इस प्रोजेक्ट पर वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के साथ मिलकर वन विभाग काम कर रहा है। सालाना एक करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो रही है।मगर सफलता कुछ खास नहीं मिल रही। सभी वनभैंसों पर अभी तक रेडियो कॉलर तक नहीं लगाए जा सके हैं, ताकि सभी पर निगरानी रखी जा सके।
करनाल वाली क्लोन मादा अभी नहीं है तैयार-
इस प्रजाति को बचाने के लिए करनाल से क्लोन के जरिए मादा मादा वन भैंसा का जन्म हुआ। इसे अभी बाड़े में रखा गया है। मगर यह प्रजजन के लिए तैयार नहीं है।
20 साल में दावे-
वर्ष 2001 में तत्कालीन वन विभाग के अफसरों का दावा था कि उदंती में 72 वनभैंसे हैं। 2002 से ०4 तक अफसर दावे पर कायम रहे, मगर वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआइ) की टीम ने इन दावों की पोल खोल दी। २००७ की रिपोर्ट में सिर्फ सात वन भैसों मिले। 2017 तक उदंती में 11 वनभैंसे थे।
उदंती में बाड़ा, अब वारनवापारा में रखेंगे आसाम की वनभैंसा-
राज्य में इस वनजीव को बचाने के लिए उदंती सीतानदी अभयारण में २००५ में उदंती अभयारण्य में 23 हेक्टेयर में बाड़ा तैयार किया गया था। यहीं पर आशा ने सभी वनभैंसों को जन्म दिया। मगर अब जिन वनभैंसों को आसाम से ला रहे हैं, उन्हें वारनवापारा में रखने की तैयारी है। वहां पर बाड़ा बनाया गया है।
2007 की गणना के अनुसार उदंती में…-
नर- रामू, जुगाडू, श्यामू, कालिया, छोटी, राजा (बधाा) और मादा आशा (स्थानीय पालतु है, जिसे लेकर विवाद भी है) को रखा गया। वनभैंसा कालिया 2013 में, श्यामू और जुगाड़ू 2018-१९ में मृत पाए गए थे। रामू की बीते तीन साल से कोई खबर नहीं है।
बाड़े में पैदा हुए वनभैंसे-
नर- राजा (2007), प्रिंस (2009), मोहन (2011), वीरा (2012), सोमू (2013) नवंबर २०१९ में हीरा को जन्म दिया।। मादा- खुशी का जन्म 12 अप्रैल 2015 को हुआ था।
अभी हमारे पास सिर्फ खुशी ही मादा वनभैंसा बची है। आसाम से मादा वनभैसों को लाजा जा रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका कुनबा तेजी से बढ़ेगा।
विष्णु नायर, डीएफओ, उदंती सीतानदी अभयारण