पूजा विधि
देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) पर दिवाली की तरह ही स्वच्छता का विशेष ध्यान दें। नित्य कर्म से निवृत्त होकर संपूर्ण घर को स्वच्छ करें। एकादशी पर्व पर नदी में स्नान का विशेष महत्व होता है। अगर ऐसा संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल से स्नान कर सकते हैं। श्रीहरि विष्णु 4 माह के शयन के उपरांत देवशयनी एकादशी पर जागृत होते हैं तो उनके स्वागत के लिए विशेष नियम देवउठनी एकादशी पर किए जाते हैं। देवउठनी एकादशी पर रात्रि जागरण, पूजा अर्चना अति शुभ फल कारक मानी गई है।
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– पूरे घर को रंगोली व गैरु से ऐपण से सजाया जाता है।– गन्ने व आम के पत्तों से श्री हरि विष्णु के लिए मंडप बनाएं।
– विष्णु जी को मंदिर में स्थापित करें। घी की अखंड ज्योत जलाए जो कि अगले दिन तक प्रज्वलित रहे तो अति शुभ माना जाता है।
– श्री हरि विष्णु व देवी लक्ष्मी को स्नानादि कराने के उपरांत वस्त्र अर्पित करें
– रोली, अक्षत, कुमकुम सफेद व पीले पुष्प अर्पित करें।
– पंच मिठाई, पंचमेवा, तुलसी के पत्ते पंचामृत भोग लगाएं।
– विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घी के दीपक से आरती करें।
– शाम के समय 11 दीपक प्रज्वलित करें।
एकादशी का महत्व व उपाय
धार्मिक मान्यता अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक पूर्ण श्रद्धा भाव से एकादशी का उपवास रखते हैं उन सभी को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। जो भी जातक कुण्डली में पितृदोष से पीड़ित हों ऐसे जातक यदि एकादशी का उपवास रखें तो पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके पितरों को भी लाभ मिलता है। पितरों की आत्मा को शांति व मोक्ष प्राप्त होता है।