scriptकॉन्फ्रेंस में डॉक्टरों ने बताया- कैप्सूल से छोटे बच्चों के लिवर से लेते हैं इमेज | Doctor talk to new techniques in child liver problems | Patrika News
रायपुर

कॉन्फ्रेंस में डॉक्टरों ने बताया- कैप्सूल से छोटे बच्चों के लिवर से लेते हैं इमेज

नवजात की सुरक्षा पर मंथन

रायपुरNov 25, 2019 / 11:23 pm

Tabir Hussain

कॉन्फ्रेंस में डॉक्टरों ने बताया- कैप्सूल से छोटे बच्चों के लिवर से लेते हैं इमेज

रायपुर की डॉ रिमझिम और मुंबई की डॉ आभा स्पीच देती हुईं।

रायपुर। बीमारी का उम्र से नाता नहीं होता। ये कब किस पर अटैक कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता। अलर्टनेस और अवेयरनेस ही एकमात्र तरीका है खतरे से बचने का। पैरेंट्स को चाहिए कि नवजात की सेफ्टी पर पूरा ध्यान दें। कई बार कुछ चीजें हम हल्के में ले लेते हैं जिसकी हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। हर बीमारी का इलाज संभव है बशर्ते वक्त रहते डिटेक्ट किया जा सके। चूंकि नई-नई टेक्नीक आ गईं हैं। उन पर देश-विदेश में रिसर्च भी चल रहे हैं। इसलिए इनसे अपडेट पीलिया को नॉर्मल न समझेंडॉ रिमझिम श्रीवास्तव ने कहा कि न्यू बेबी को बीलियरी अट्रेसिया (पीलिया) होता है तो लोग उसे 14 दिन का नॉर्मल समझकर नजरअंदाज करते हैं। ये चीज आगे चलकर दिक्कत कर देती है। जब तक परेशानी बढ़ती है टाइम भी निकल चुका होता है। जर्नली चार महीने में बच्चे को अस्पताल लाते हैं जबकि इसका इलाज 3 महीने से पहले अच्छे तरीके से हो सकता है। कई बार ऐसा होता है कि पैरेंट्स को पता ही नहीं चलता कि बच्चे को बीलियरी अट्रेसिया है। इसके सिम्टम्स हैं कि पॉटी सफेद या हल्की पीली होना। आंखों में पीलापन। लिवर में पिरायपुर की डॉ रिमझिम और मुंबई की डॉ आभा स्पीच देती हुईं। त्त की नलियां ब्लॉक होने से यह प्रॉब्लम आती हैं। अगर नवजात शिशु में 14 दिनों से ज़्यादा उम्र तक पीलिया नजऱ आता है तो तुरंत लिवर रिंग विशेषज्ञ की सलाह लें।

आंतों की डाइग्नोस थोड़ी मुश्किल

डॉ रिमझिम ने बताया कि बच्चों के आँतों के प्रॉब्लम का इलाज इंडोस्कॉपी से किया जाता है। ऊपरी और निचले हिस्से की इंडोस्कॉपी तो आसान होती है लेकिन सेंटर पार्ट के लिए कैप्सुल टेक्नीक से इलाज किया जाने लगा है। कैप्सुल पेट में जाकर आंतों के उस स्पॉट की इमेज लेता है जहां ट्रीटमेंट किया जाना है। यह तकनीक शुरू में महंगी थी लेकिन अब अपेक्षाकृत सस्ती हो गई है। 10 से 15 प्रतिशत बच्चों को गाय के दूध से एलर्जी होती है जिसे डाइग्नोस कर पाना आसान नहीं होता।

विल्सन डिजीज पर रिसर्च

मुंबई से आईं डॉ आभा नागराल ने बताया इन दिनों बच्चों में कॉपर की अधिकता से होने वाली बीमारी विल्सन डिजीज पर रिसर्च चल रहा है। इसमें जैनेटिक लिंक पर वर्क चल रहा है। इसमें मेटाबोलेटिक एवं जेनेटिक का भी रोल होता है। दूध की वजह से गैलेक्टोसिमिया और फ्रुट के कारण फ़्रुक्टोस इंटोरलेंस होता है। इसी तरह एक बीमारी है विल्सन डिज़ीज़ जो ब्रेन और लिवर दोनों को इफेक्ट करती है। टाइम पर इसे डिटेक्ट कर लिया जाए तो इलाज संभव है। इसके सिम्टम्स हैं पीलिया, पेट में पानी भरना , बच्चे की लार टपकना। क्लास में अचानक से हैंडराइटिंग बिगड़ जाना और हाथ थरथराना, आवाज़ का लडखड़ऩा इत्यादि । इस कॉन्फ्रेंस में बच्चों के उल्टी या मल में खून आने की बीमारियों के बारे में भी चर्चा की गई।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो