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रायपुर

कंगला मांझी समाज ल जगा के चल दिस

मांझी माने नदी ल डोंगा पार करइया। आज आदिवासी समाज के सुरूज नरायन अगास म चमके बर ऊपर उठत हे। ए दिन ल लाने बर कंगला मांझी सही तपस्वीमन जिनगी खुवार कर दिन। वोमन ल पैलगी। कंगला मांझी समाज ल जगा के चल दिस।

रायपुरDec 05, 2023 / 04:22 pm

Gulal Verma

कंगला मांझी समाज ल जगा के चल दिस

कंगला मांझी समाज ल जगा के चल दिस

छत्तीसगढ़़ म आदिवासी समाज के बड़े-बड़े नेतामन अपन सरबस लुटा के जन-जन के हित करिन। खुद कंगला रहिगें, फेर छत्तीसगढ़ के बाल बांका नइ होवन दीन । अइसने एकझन रद्दा देखइया बीर रिहिस ‘कंगला मांझी’। हीरासिंह देव वोकर पेंड़ी नाव रिहिस। देव परिवार छत्तीसगढ़ म राजकाज चलाए हें। कांकेर तीर के गांव कुरूटोला म हीरासिंह देव के जनम होइस। 16 बछर के उमर म अपन खेत के मेड़ के पेड़ के डारा ल काट दिस। अंगरेज अपीसर किहिस- बिना हुकुम कइसे पेड़ के डारा कटिस। कंगला मांझी किहिस – हमर खेत, हम पेड़ लगायेन, खेत म छांव परे लगिस। फसल के नुकसानी कोन दिही।
तेलावट वोकर पुरखा के गांव रिहिस। कुरूटोला अउ तेलावट के मनखे जुरिया गें। अंगरेज अपीसर डररागे। उही दिन ले ‘कंगला मांझी’ नाव धरके हीरासिंह देव जुरमिल के लड़े के संकलप ले लिस। लाल झंडा उठाके सबला एकजुट करत गिस। अपन संगवारीमन ल सुभास चंद्र बोस के सैनिकमन के डरेस पहिरइस। अउछत्तीसगढ़ म हजारों सैनिक तैयार करिस।
आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरूजी समझइस। किहिस- देस आजाद होगे। आप असन देस के सेऊक ल तिरंगा लेके समाज ल आगू बढ़ाना हे। कंगला मांझी मान गे। इंदिरा गांधीजी से मान मिलिस। कंगला मांझी सेवा के परन लेके आदिवासी समाज के बीच एकता बर काम करिस।
समाज म एकता लाने बर भारत भूमिका किताब ल गोंडी अउ हिन्दी म लिख के छपइस। सबला एक करे बर बावन जात के बिबरन देके बतइस के सबोझन एक संस्करीति, एक परंपरा ल मानथन। छत्तीसगढ़ म दलित, पिछड़ा अउ आदिवासी समाज एक हे। एक रिहि त सबके मान रिहि।
भारत भूमिका म गीत लिखिस। गोंडवाना के इतिहास लिखिस। कंगला मांझी 26 जनवरी अउ 15 अगस्त के दुरूग म बड़े जुलूस निकालय। सियानमन देखे रिहिन। चंदूलाल चंद्राकर, वासुदेव चंद्राकर, डॉ. खूबचंद बघेल, छेदीलाल बैरिस्टर, मिनीमाता, बिसाहूदास महंत संग कंगला मांझी के घरोबा रिहिस। दुरूग के गोड़पारा म कंगला मांझी के पहिली पत्नी के परिवार बस गे। मांझी ह बालाघाट के घोड़ादेही गांव म दूसरइया बिहाव करिस।
पहली जीवन संगिनी के गुजरे के बाद फुलवा देवी कांगे संग बिहाव करिस। फुलवा देवी कांगे पढ़े- लिखे महिला ए। मांझीजी के संग दिल्ली म रिहिस। देसभर म दौरा करिस। कंगला मांझी कांकेर जिला ले निकल गे। डौंडीलोहारा के तीर के भगतमन वोला इहां बघमार म लानिन। बघमार ह आज मांझीधाम कहाथे।
5 दिसम्बर 1984 के मांझीजी ए दुनिया ले बिदा ले लिस। वोकर लाखों सिपाही रिहिन। सबझन बघमार म अइन। फुलवा देवी के छोटे-छोटे तीन लइका रिहिस। दू बेटी, एक बेटा। अंधियारी छागे। फेर, सिपाहीमन ल देखके फुलवादेवी ल हिम्मत अइस। मांझीजी के सिपाहीमन ल संगठित करे के परन लेके फुलवा देवी फेर दौरा करिस।
आज छत्तीसगढ़, मध्यपरदेस, बिहार, उत्तरपरदेस, उत्तरांचल, ओडिसा अउ झारखंड के सिपाही सब एकजुट हें। वोमन गांव म सरपंच, पंच अउ कोटवार हें। मांझीजी के बेटा कुंभदेव ह परेड करवाथे। संकल्प ले जाथे के गांव-गांव म रखवार बन के हमन ल मांझी के सच्चा सैनिक कहाना हे।
सैनिकमन म कतको कलाकार रहिथें। वोमन मंच म गीत गाथें। दू -चार गीत के बानगी इहां पेस हे। जेमा छत्तीसगढ़ के जीवन के रंग अउ चलागन ल हम समझ सकथन। बहुत जु्न्ना गीत हे –
हाय रे डुमर खोला
छतिया ल बान मारे
तरसत हे चोला।
ए गीत ल रामचरन उइके हर बछर गाथे। रामचरन ह बड़े कलाकार ए। जंगल के गांव ले रामचरन हर बछर आथे। सेवा करथे अउ गीत गाथे। रामचरन ह देवार समाज के गीत ल गजब सुर म गाथे।
ये भंवा के मारे रे मोर ससिया
तिरछी नजरिया भंवा के मारे।
जंगल के पेड़, पहार, नदिया के गीत घलो गाए जाथे –
हाय डारा लोर गे हे रे।
बइसिन हे चिरइया
डारा लोर गे हे रे।
5 दिसम्बर से 7 दिसम्बर हर बछर कंगला मांझी के गांव बघमार म सैनिक सम्मेलन अउ सम्मान समारोह होथे।

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