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हौसले की उड़ान: टपरी में चाय बेचने वाली मां का बेटा बना चंद्रयान-3 की तैयारी में जुटे इसरो का हिस्सा

यह हमारे शहर के लिए गौरव की बात है कि भरत कुमार ने किस तरह संघर्ष करते हुए इस मुकाम को हासिल किया है। वे उन बच्चों के लिए मिसाल है, जो पढ़ाई को अमीरी और गरीबी से जोड़कर देखते हैं।

रायपुरJan 29, 2020 / 08:06 pm

Karunakant Chaubey

हौसले की उड़ान: टपरी में चाय बेचने वाली मां का बेटा बना चंद्रयान-3 की तैयारी में जुटे इसरो का हिस्सा

हौसले की उड़ान: टपरी में चाय बेचने वाली मां का बेटा बना चंद्रयान-3 की तैयारी में जुटे इसरो का हिस्सा

भिलाई. चरोदा में गरीब परिवार में पल कर बड़े हुए 23 वर्षीय के. भरत कुमार का चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में प्रोजेक्ट इंजीनियर के तौर पर हुआ है। इसरो चंद्रयान-3 को नवंबर 2020 में अंतरिक्ष में छोडऩे की तैयारी में जुटा है।

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यह हमारे शहर के लिए गौरव की बात है कि भरत कुमार ने किस तरह संघर्ष करते हुए इस मुकाम को हासिल किया है। वे उन बच्चों के लिए मिसाल है, जो पढ़ाई को अमीरी और गरीबी से जोड़कर देखते हैं। भरत ने जमीन से आसमान तक का सफर को तय करने में गरीबी को आड़े आने नहीं दिया।

पति बैंक में सुरक्षाकर्मी, मां बेचती है चाय

भरत के पिता के चंद्रमेनेश्वर राव बैंक में सुरक्षा कर्मी के तौर पर काम करते हैं। यहां से मिलने वाले दिहाड़ी मजदूरी से उनका घर नहीं चल पाता।इस वजह से उनकी मां के वनजाविसा घर के पास सुबह टपरी में इडली और चाय बेचती है। जी केबिन, चरोदा में उनका खपरे वाला कच्चा मकान है। जिसमें माता, पिता और बहन के साथ भरत रहते हैं।

फीस के लिए पैसै नहीं थे

भरत ने चरोदा के केंद्रीय विद्यालय में पढ़़ाई की। जब वे ९वीं कक्षा पास हुए तब घर वालों के कहने पर टीसी लेने गया। स्कूल में शिक्षकों ने टीसी लेने का कारण पूछा तब उन्होंने अपने घर की माली हालत के बारे में जानकारी देकर बताया कि फीस नहीं दे पाएगा। दूसरे स्कूल में दाखिला लेगा। इस पर शिक्षकों ने उनके माता-पिता को बुलाया और फीस माफ करने के लिए आवेदन भरवाया। इस तरह उनका फीस माफ हुआ।स्कूल के शिक्षकों ने मिलकर भरत को किताब, कापी खरीद कर दिया। भरत ने 2014 में 12 वीं की परीक्षा में प्रवीण सूची में स्थान पाया।

मदद के लिए उद्यमियों ने बढ़ाया हाथ

शिक्षकों को कहने पर उसने आईआईटी में दाखिला के लिए परीक्षा दी। बेहतर अंक की वजह से उसे आईआईटी धनबाद में दाखिला मिला। भरत बताते हैं कि यहां पढ़ाई करने उसके पास फीस के पैसे नहीं थे। पत्रिका में 2014 में उनके मेरिट में आने की खबर पत्रिका ने प्रमुखता से छापी थी।

उनकी माली हालत के कारणआगे की पढ़ाई में दिक्कत का भी जिक्र किया था। पत्रिका में प्रकाशित समाचार के बाद कई उद्यमी मदद के लिएआगे आए। रायपुर के उद्यमी अरूण बाग व उनकी पत्नी ने पूरे 4 साल की पढ़ाई का खर्च उठाया। इसके बाद निजी कंपनी जिंदल ने अन्य खर्च का जिमा लिया।

6 माह पहले ही हो गया इसरो के लिए चयन

भरत जब 7 वें सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहे थे, तब वहां इसरो का कैंपस सलेक्शन हो रहा था। कैंपस सलेक्शन में टॉप 15 मैकेनिकल इंजीनियरों से केवल भरत का चयन हुआ। जुलाई 2019 में उसने इसरो ज्वाइन किया। जहां प्रशिक्षण होने के बाद अब उससे प्रोजेक्ट के काम को कराया जा रहा है।

आईआईटी धनबाद में भी मिला गोल्ड मेटल

आईआईटी धनबाद में भी उसने अपनी छाप छोड़ी। यहां 98 फीसदी से अधिक अंक हांसिल किया। जिसके लिए उसे गोल्ड मेडल जनवरी 2020 में दिया गया। वह पल उसके परिवार के लिए सबसे बड़ा था।

चरोदा के गरीब बच्चों का बना हीरो

भरत असल में चरोदा के उन बच्चों का हीरो है, जिनके घर चरोदा और जी केबिन की तंग गलियों में हैं। वे कच्चे मकान पर रहकर भी पढ़ाई के बल पर बड़ा बनने का सपना देख रहे हैं। भरत के पिता राव का कहना है कि उसने गरीबी के कारण बेटे के बारे में कभी ऐसा सोचा नहीं था। कभी कल्पना तक नहीं की थी। अब बेटे पर गर्व हो रहा है। भरत की बहन लवण्या बीकॉम की छात्रा है। लवण्या कहती है कि उसे अपने भाई पर गर्व है।

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यह चल रहा है तिरुवनंतपुरम में

तिरुअनंतपुरम स्थित वीएसएससी में उपग्रह प्रक्षेपण वाहन और परिज्ञापी रॉकेट (साउंडिंग रॉकेट) के डिजाइन व विकास से संबंधित गतिविधियां संचालित की जाती है। इस केंद्र में प्रक्षेपण यान के डिजाइन, प्रणोदक, ठोस प्रणोदक तकनीक, वायुगतिकी, विमान संरचना (एयरो स्ट्रक्चर), वायु ऊष्मा (एयरो थर्मल) पहलुओं वैमानिकी पॉलिमर (एवियोनिक्स पॉलिमर) व योगिक (कॉपोजिट), मार्गदर्शन, नियंत्रण व अनुकारक (कंट्रोल एंड सिक्युलेटर), कंप्यूटर व सूचना, यांत्रिक अभियांत्रिकी, आंतरिक्ष यंत्रावली (एयरोस्पेस मैकेनिजम), यान एकीकरण व परीक्षण, अंतरिक्ष उपस्कर, रसायन तथा सामग्री जैसी सहसंबंधित तकनीको पर अनुसंधान व विकास क्रियाकलाप चलाए जाते हैं।

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