उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने किसानों पर सबसे पहले हमला उनकी भूमि उनके मर्जी के बिना छीनने के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में संशोधन अध्यादेश के रूप में किया। सरकार तीन बार अध्यादेश लायी, हालांकि सरकार इसमें कामयाब नहीं हो सकी।
संगठन के संयोजक ने केन्द्र सरकार के साथ भाजपा की प्रदेश सरकार पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ के किसानों पर दूसरा हमला राज्य सरकार द्वारा धान खरीदी की लिमिट को प्रति एकड़ 20 क्विंटल से कम करके 10 क्विंटल कराने के रूप में किया। हालांकि ऐसा करने में भी मोदी सरकार को पूरी कामयाबी नहीं मिल पाई अलबत्ता 5 क्विंटल कम करके 15 क्विंटल कराने में अवश्य कामयाब रही।
उन्होंने सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के किसानों पर तीसरा हमला राज्य सरकार द्वारा किसानों को धान की सरकारी खरीदी पर प्रति क्विंटल 3 सौ रुपए बोनस को बंद कराने के रूप में किया, हालांकि केन्द्र सरकार को ऐसा कर पाने में भी विफलता ही मिली किसानों के असंतोष से घबड़ाई रमन सरकार को दो साल का बोनस देने की अनुमति प्रदान करने की अनुमति मोदी सरकार को देनी पड़ी फिर भी किसानों को दो साल के बोनस की 24 सौ करोड़ रुपये की राशि से वंचित रह जाना पड़ा।
उन्होंने मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल पर भी कई सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने 4 साल में ऐसा कोई
कार्य नहीं किया है जिसका लाभ किसानों को मिले। न्यूनतम समर्थन मूल्य का वायदा पूरा नहीं कर सके। केन्द्र सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का सपना अवश्य दिखा रही है, लेकिन इसके लिए ठोस योजना नहीं बताई जा रही है, जब तक आज की आमदनी और आज की मंहगाई तय न हो जाए, तब तक 2022 में आमदनी दोगुना होने का आंकलन कैसे किया जा सकेगा?
संगठन संयोजक राजकुमार ने कहा कि हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना से उपज में वृद्धि भले ही हो जाए, किसानों की आमदनी बढऩे की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि बाजार के नियम के अनुसार उत्पादन जितना अधिक होगा मूल्य उतने ही कम होंगे। किसानों के आत्महत्या के मामले में भी केन्द्र सरकार के चार साल अच्छे नहीं रहे हैं, किसान यूपीए के कार्यकाल में और उससे पहले भी आत्महत्या करते हैं हैं किंतु मोदी सरकार के चार साल में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ी है।