कोलकाता की दोनों महत्वपूर्ण सीट कोलकाता नार्थ और कोलकाता साउथ में चुनावी लड़ाई केवल टीएमसी और भाजपा के बीच ही है। मैदान में खड़े बाकी सारे दल केवल अपनी प्रजेंट लगाने के लिए हैं। भारी संख्या में रह रहे बिहार, झारखंड के वोटर्स के सपोर्ट पर उत्साहित भाजपा को इस बार परंपरागत बंगाली वोटर्स का भी समर्थन हासिल हो रहा है। माक्र्सवादी पार्टी के कार्यकर्ता ममता को बेदखल करने के लिए भाजपा के साथ खड़े हो गए हैं। तृणमूल के बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर भाजपा में आने से भी परंपरागत बंगाली वोटर्स की सोच बदल रही है। भाजपा के सामने यहां सबसे बड़ी चुनौती अपने वोटर्स को घर से बाहर निकालने की रहेगी, जिसमें उसे माक्र्सवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मदद मिल सकती है,वहीं ममता के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना वोट बैंक संभालने की है।
हालांकि चंद्र कुमार बोस राजनीति के नए खिलाड़ी है। लेकिन, उन्हें तथागत राय के प्रदर्शन और भाजपा के प्रभावी प्रचार के साथ ही नेताजी का भतीजा होने का लाभ मिल सकता है। वहीं माला राय पिछले 24 साल से कोलकाता नगर निगम से जुड़ी हुई है। लोगों के साथ जुड़ाव और टीएमसी चीफ ममता की सुरक्षित सीट उन्हें चंद्र कुमार बोस की तुलना में एक कदम आगे खड़ा करती है। शांतनू चक्रवर्ती कहते हैं-फैसला कुछ भी हो, इस सीट पर रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। वहीं 20 साल से कोलकाता में रहकर काम कर रहे झारखंड के शिवकुमार झा कहते हैं भैया प्रत्याशी कोई भी हो, इस बार बीजेपी यहां धमाका कर सकती है। इन्हीं के बिरादर मधुबन भी इसी बात का समर्थन करते नजर आते हैं। इसी लोकसभा से तीसरी प्रमुख प्रत्याशी माक्र्सवादी पार्टी की नंदिनी मुखर्जी है जो पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर थी। नंदिनी की भूमिका को भी इस चुनाव में नकारा नहीं जा सकता। बंगाली वोटर्स में उनका खासा दबदबा है। इस सीट से कौन जीतेगा, यह तय करने में इनकी भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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