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रायपुर

बस्तर में सिमटते जंगल

साल २००१ में ८२०२ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन अस्तित्व में था, वहीं २०१७ में घटकर ४२२४ वर्ग किलोमीटर रह गया

रायपुरJul 20, 2018 / 11:06 pm

Gulal Verma

cg news

बस्तर में सिमटते जंगल

अपने मिश्रित प्रजाति के बेशकीमती जंगलों के लिए मशहूर बस्तर में वन अतिक्रमण के सिलसिले में लगाम लगती नहीं दिखती। जंगल महकमा भी इस मामले में असहाय साबित हो रहा है। लिहाजा यहां के जंगल लगातार सिमटते जा रहे हैं। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में हाल में ही हुए अतिक्रमण के मामले में पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया। जहां से सभी को जेल भेज दिया गया। इससे कुछ समय पहले ही माचकोट रेंज के जंगल में अतिक्रमण के सिलसिले में ३३ ग्रामीणों को गिरफ्तार किया गया था। बस्तर की अदालतों में वन अतिक्रमण के हजारों मामले चल रहे हैं।
फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में भी बस्तर में लगातार घट रहे वन क्षेत्र पर चिंता जताई गई है। सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक साल २००१ में बस्तर में जहां ८२०२ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन अस्तित्व में था, वहीं २०१७ में यह क्षेत्रफल घटकर ४२२४ वर्ग किलोमीटर में ही सिमट कर रह गया। कुल मिलाकर इन १७ सालों में बस्तर में ३९७८ वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कम हो गया है। इतने बड़े इलाके में जंगल कैसे कम हो गया, इसका जिक्र भी फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने अपनी इस रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट के अनुसार जंगलों का रकबा कम होने की सबसे बड़ी वजह अतिक्रमण है। इसके अलावा अवैध कटाई, खनन और नई सिंचाई परियोजनाएं भी हैं।
बस्तर में बढ़ती आबादी का दबाव भी लगातार यहां के जंगलों पर पड़ रहा है। पिछले करीब ३५ सालों में यहां २५० से अधिक बस्तियां बस चुकी हैं। वहीं खेती के लिए ६५ हजार ९५ हेक्टेयर वन भूमि पर ४५ हजार से अधिक लोगों ने कब्जा जमा रखा है। अतिक्रमणकारियों ने लाखों पेड़ों को काटकर जंगलों को चटियल मैदान में तब्दील कर दिया। अब यहां खेती की जा रही है। यह सिलसिला अभी भी बदस्तूर जारी है। बहरहाल, वन अतिक्रमण पर रोक लगाना निहायत जरूरी है। क्योंकि, जहां बेशकीमती जंगल तबाह हो रहे हैं, वहीं अतिक्रमणकारी हाथ लगे वन्य जीवों को भी निशाना बना लेते हैं। आसपास के गांव के पंचायत पदाधिकारी और कोटवार भी इस तरह की करतूतों से मुंह फेर लेते हैं।
बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है। पहले जगदलपुर शहर के आसपास ही साल के जंगल नजर आते थे। अब यहां से ५ किलोमीटर की दूरी के बाद ही साल के जंगल दिखाई देते हैं। चित्रकोट मार्ग के साल के जंगलों का सफाया हो चुका है। यहां के ज्यादातर गांव जंगलों के करीब बसे हैं। ऐसे में वन सुरक्षा में गांव के लोगों की सक्रिय भागीदारी बढ़ाकर ही वन अतिक्रमण पर कारगर तरीके से काबू पाया जा सकता है। बशर्ते, वन विभाग भी इस दिशा में मजबूत इच्छाशक्ति के साथ पहल करे।
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