
काम को पूरी सच्ची लगन से करते है तो उसे पूरी कायनात मिलाने में लग जाती है। हमेशा कहा जाता है कि मंजिल पर फोकस करो, लेकिन अगर रास्ते आपके संघर्ष और बुलंद इरादों के बीच के मापे गए हों तो कामयाबी पाना संभव है।
[typography_font:14pt;" >जिंदगी के दो पहलू में अमीरी और गरीबी होती है। कुछ इसी तरह हौसले और संघर्ष की कहानी है शहर के उत्तमचंद तारवानी की। उत्तमचंद आज दो साबुन फैक्ट्री के मालिक है, लेकिन उनकी कामयाबी की इबारत कड़ी मेहनत और पसीने की बूंदों से लिखी गई है। पत्रिका प्लस मजदूर दिवस के अवसर पर आपको रूबरू कराने जा रहा है कि कैसे उत्तमचंद उर्फ तरी ने अपना मुकाम बनाया।
बचपन में लगाते थे बर्फ का ठेला
तरी बताते है कि जब मैं 10 साल का था तब उनके पिताजी का देहांत हो गया। जिसकी वजह से घर की जिम्मेदारी बढ़ी। बचपन से ही मेहनती उत्तमचंद ने शुरुआत करिलड्डू बेचने से की और लोगों को खाने का टिफिऩ पहुंचाया करते थे। उसके बाद वे सड़कों पर बफऱ् का ठेला लगाया। साथ ही फ़ैंसी स्टोर में काम किया।
साबुन खरीदकर बेचने का किया काम
उन्होंने बताया कि साबुन खऱीदकर बेचने का काम शुरू किया और कुछ समय के बाद कपड़ा धोने वाला साबुन की एक छोटी फैक्ट्री शुरू की। धंधे में कुछ दिन बाद लगातार नुक़सान सहना पड़ा। कुछ दिन तक एेसा चलता रहा, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और शुद्ध तेल से ही साबुन बनाता रहा। फिर धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आई और साबुन की बिक्री अच्छे से होने लगी।
सैकड़ों लोगों को दिया रोजगार
बिजनेसमैन तरी बताते है कि जब काम अच्छा चलने लगा तो मैंने यह सोच लिया था कि मेरे फैक्ट्री जितने कर्मचारी काम करेंगे उन्हें किसी भी काम की कमी नहीं होने दूंगा। अपने छोटे भाइयों, बच्चों एवं भतिजों को भी इस व्यवसाय में शामिल करने के साथ ही सैकड़ों को रोजग़ार दिया।
Published on:
01 May 2018 01:01 pm
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