रघुबीर थी आखिरी सैलुलाइड फिल्म
डिस्ट्रीब्यूटर अलक राय ने बताया, छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में सैलुलाइड (रील) शूटिंग का दौर बहुत पहले से चला आ रहा था। चाहे पहली फिल्म कहि देबे संदेश हो या पहली कॉमर्शियल फिल्म मोर छईयां भूईंया। ये सैलुलाइड से ही बनी थी। सैलुलाइड से बनने वाली आखिरी छत्तीसगढ़ी फिल्म अनुज शर्मा स्टारर रघुबीर थी।मोर जोड़ीदार से महंगे कैमरे की शुरुआत
डीओपी सिद्धार्थ ने बताया, किसी भी फिल्म की मेकिंग में सिनेमैटोग्राफी बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। मोहित साहू कृत मोर जोड़ीदार की शूटिंग रेड कैमरे से की गई थी, जो कि उस वक्त महंगा हुआ करता था। डिस्ट्रीब्यूटर लकी रंगशाही और लाभांश तिवारी ने बताया, सबसे पहले कुरुक्षेत्र में एरी कैमरा यूज किया गया।![सैलुलाइड से फैंटम तक पहुंचा छत्तीसगढ़ी फिल्मों का सफर](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/02/03/fantom2_8707805-m.jpg)
आखिर फैंटम का यूज क्यों
पुराने दौर में जब एक सेकंड का वीडियो बनाया जाता था तो उसके लिए २४ फ्रेम लगते थे। यानी कैमरा एक बार घूमता था और 24 फ्रेम लेता था। अगर किसी सीन को धीमा (स्लो) दिखाना हो तो कैमरे को हाईस्पीड करना पड़ता था ताकि वह 48 फ्रेम ले। चूंकि कैमरे की गति तेज करनी होती है इसलिए उसे हाई स्पीड कहते कहा जाता है लेकिन सीन स्लो लिए जाते हैं। स्लो सीन जैसे किसी सीन को बारीकी से बहुत धीमे अंदाज में दिखाना हो। फैंटम कैमरे को एक सेकंड में 1000 और इससे ज्यादा भी फ्रेम लिया जाता है।![सैलुलाइड से फैंटम तक पहुंचा छत्तीसगढ़ी फिल्मों का सफर](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/02/03/fantom_8707805-m.jpg)