ऊपरी मंजिल में नया चिल्ड्रन वार्ड तैयार किया गया है। यहां 15 पलंगों पर शुक्रवार को दोपहर 12 बजे 25 बच्चे भर्ती थे। मगर यहां लगे 8 पंखों में से 3 पंखे चालू नहीं थे। बच्चे गर्मी से बेहाल दिखाई दिए। कई माताएं अपने बच्चों को हाथों से पंखा झुलाती नजर आईं। अपनी भतीजी का इलाज कराने के लिए आईं गुंदरई कॉलोनी की गोमती बाई विश्वकर्मा ने बताया कि उनकी भतीजी को डिहाइड्रेशन हो गया है। डॉक्टर ने ड्रिप लगा रखी है, एसी भी बंद पड़े हुए हैं।
शासकीय जिला अस्पताल में अव्यवस्थाएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। शुक्रवार को सुबह से लेकर दोपहर तक ओपीडी में 780 मरीजों ने पंजीयन कराए। सुबह 11.30 बजे ओपीडी के बाहर मरीजों की भीड़ नजर आ रही थी। मगर ओपीडी में वर्ग दो के चिकित्सक इसरार अब्बासी अकेले मरीजों का इलाज करते नजर आए। वहीं बच्चा वार्ड में डॉ. गुरिंदर सिंह ही उपचार करते मिले। बाकी सोनोग्राफी सेंटर में डॉ. दीपक गुप्ता प्रसूति महिलाओं की सोनोग्राफी में व्यस्त मिले।
आग से जले हुए मरीजों को डॉक्टर सामान्य मरीजों के साथ ही बीच में भर्ती कर देते ेहैं। इससे उन मरीजों में संक्रमण का खतरा बना रहता है। जबकि नियम के मुताबिक बर्न मरीजों के लिए एक अलग से वार्ड बनाया जाना चाहिए। इस वार्ड में एसी भी लगाया जाना चाहिए, ताकि वार्ड का वातावरण हमेशा कूल बना रहे। बर्न वार्ड को अलग बनाए जाने की मांग नागरिकों द्वारा अस्पताल प्रबंधन से लेकर स्वास्थ्य अधिकारयों से लगातार की जा रही है।
जिला अस्पताल में कहने को भारी भरकम स्वास्थ्य अमला मौजूद है। लेकिन श्ुाक्रवार को मरीजों के परिजन स्ट्रेचर खींचकर एंबुलेंस तक ले जाते हुए नजर आए। इसी तरह ओपीडी में भी परिजन ही उस स्ट्रेचर को धकेलकर चिकित्सक के रूम तक ले गए। जबकि वार्डबॉय अकसर गायब रहते हैं। हैरत की बात तो ये है कि अस्पताल प्रबंधन के अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं।
सर्जिकल वार्ड और ट्रामा सेंटर में दुर्घटनाएं मारपीट में चोट लगने वाले मरीजों को इलाज कर थोड़ी देर के लिए भर्ती किया जाता है। अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर अभी ठीक तरह से चालू नहीं है। यहां एक्सीडेंट और अन्य दुर्घटनाओं से चोटिल होकर आने वाले मरीजों को सीधा माइनर ओटी में भेजा जा सकता है। मगर ट्रामा सेंटर बनकर तैयार होने के बाद भी यहां अभी तक एक भी मरीज को भर्ती नहीं किया जाता है।
– डॉ. यशपाल सिंह बाल्यान, आरएमओ जिला अस्पताल