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रायसेन

जिस पेड़ की छांव में जिस सड़क के लिए किए आंदोलन, उसी सड़क के लिए काट दिया पेड़

पर्यावरण दिवस के एक दिन पहले मिट गया पुराने पीपल और रैनीझरा का अस्तित्व।

रायसेनJun 04, 2021 / 10:06 pm

praveen shrivastava

जिस पेड़ की छांव में जिस सड़क के लिए किए आंदोलन, उसी सड़क के लिए काट दिया पेड़

जिस पेड़ की छांव में जिस सड़क के लिए किए आंदोलन, उसी सड़क के लिए काट दिया पेड़

प्रवीण श्रीवास्तव, रायसेन. कहते हैं बुजुर्ग हमारी धरोहर होते हैं, चाहे वह इंसान हों या पेड़ या कोई इमारत। जब इनका साथ छूटता है तो अनुभव, तपस्या और सेवा का एक अध्याय समाप्त हो जाता है। आज कहीं विकास के नाम पर तो कहीं स्व सुख के नाम पर धरोहरों को लगातार मिटाया जा रहा है। हर कहीं ऐसा होता है, रायसेन में भी यही हो रहा है, लेकिन शुक्रवार को जिस पेड़ की बली चढ़ी, उसकी कहानी किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को व्यथित कर देगी।
शहर के बीच से गुजरे जिस नेशनल हाइवे को रायसेन से निकलाने के लिए शहर के लोगों जिस पेड़ की छांव में बैठकर महीनों आंदोलन किए, आज उसी सड़क के चौड़ीकरण के लिए उसी पेड़ की बलि चढ़ा दी। महामाया चौक के पास सदियों से सीना तानकर खड़े उस पीपल के पेड़ बेदर्दी से काट दिया गया, जो शहर के विकास के लिए कई आंदोलनों का साक्षी, बल्कि हमसाया रहा। खास बात तो ये कि शहर के लोग, प्रशासन चाहता तो इसे और इस जेसे कई पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता था, लेकिन पैसों की खनक और विकास के नाम पर धरोहरों की अनदेखी ने ऐसा नहीं होने दिया। यह पेड़ चौड़ीकरण और पाइप लाइन डालने में कोई बड़ी बाधा नहीं था। दिल्ली और गांधी नगर में तो सड़क किनारे हजारों पीपल के पेड़ लगाए हैं, ताकि पर्यावरण का संतुलन बना रहे, एक पेड़ बचाने के प्रयास नहीं किए गए।
इन महत्वपूर्ण आंदोलनों का साक्षी था
इस पीपल की छांव में आजादी के बाद सबसे पहला आंदोलन 1971 में किला स्थित शिव मंदिर के लिए किया गया था। महीनों चले उस आंदोलन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी को रायसेन आना पड़ा था। उसके बाद 1974-75 में शहर में सरकारी कॉलेज खोलने की मांग को लेकर आंदोलन किया गया। वह भी इसी पेड़ की छांव में लगभग दो साल चला था। इसके बाद 2001 में नेशनल हाइवे के लिए आंदोलन किया गया था। इनके और भी कई आंदोलन हुए।
इसी पेड़ की छांव में खड़े होकर स्व. राजमाता सिंधिया, अटल बिहारी बाजपेयी, माधवराव सिंधिया जैसे नेताओं ने जनता से वोट मांगे थे। उक्त आंदोलनों में शामिल रहे हाल ही में दिवंगत हुए स्व. राधेश्याम बशिष्ठ, हरिनारायण सक्सेना, काका ईश्वरदास गुरनानी, सरवर गुलाम, नरेंद्र दुबे जैसे लोगों की आत्माएं भी आज दुखी होंगी।
पीपल के अलावा शुक्रवार को ऐसी ही एक धरोहर, नगर पालिका के सामने सालों से अपनी बाहें फैलाए खड़े रैनीझरा के पेड़ का अस्तित्व समाप्त हो गया। वह भी पर्यावरण दिवस के एक दिन पहले। यह वही रैनीझरा था जो भीषण गर्मी में भी अपनी हरियाली और पत्तियों से पानी की बूंदों के रूप सुख और शांति की बारिश करता था।
नहीं किए प्रयास
प्रशासन और जनप्रतिनिधि चाहते तो चौड़ीकरण की आंधी में धराशायी हुए कई पेड़ बचाए जा सकते थे, लेकिल इस दिशा में किसी ने नहीं सोचा, बल्कि अनुमति से ज्यादा पेड़ काट दिए गए। काटने के लिए पेड़ों का चयन भी मनमाना हुआ है। अभी भी समय है जो पेड़ बच सकते हैं, उन्हे बचाया जाए, ताकि शहर के पर्यावरण की आब बची रहे।
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