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फैक्ट्री से घर से मालिक ने निकाला, अब अपने घर लौट रहे मजदूर, कोई पैदल तो कोई ट्रक से पूरा कर रहे सफर

कोरोना का कहर : सोशल डिस्टेंस से जरूरी पेट की भूखएनएच-तीन पर सूरत, मुंबई, पुणे विभिन्न जगह से मजदूर ग्वालियर, ईटावा, झांसी के लिए लौट रहे

राजगढ़Mar 29, 2020 / 06:21 pm

Rajesh Kumar Vishwakarma

कोरोना का कहर : सोशल डिस्टेंस से जरूरी पेट की भूख

ब्यावरा.इस तरह ट्रक, कंटनेर पर लदकर आ रहे हैं लोग, जिनकी सेवा में पुलिसकर्मी और अन्य सेवाभावी लोग लगे हैं।

ब्यावरा.राष्ट्रीय राजमार्ग-तीन पर वाहनों के पहिए भले ही इन दिनों थम गए हों लेकिन दूर दराज से आने वाले मजदूरों का कारवां लगा हुआ है। कोई पैदल तो कोई ट्रक, कंटनेर, कार, पिकअप में सवार होकर अपने गंतव्य को जा रहे हैं।
सबकी अपनी-अपनी पीड़ा है। कोरोना के कहर से ज्यादा उन्हें पेट की चिंता है, अपनों की चिंता है, सोशल डिस्टेंस से ज्यादा उन्हें अपने घर, रहने की चिंता है। लेकिन उनकी चिंता कोरोना की चैन को तोड़ रही है, सोशल डिस्टेंस की हकीकत बयां कर रही है। हर दिन निकल रहे इन लोगों के लिए कुछ प्रबंध वाहनों के हुए हैं लेकिन जो एहतियात कोरोना के प्रोटोकॉल के बरते जाने चाहिए वे नहीं फॉलो हो पा रहे हैं। हालांकि शहर के तमाम सेवाभावी लोग और पुलिसकर्मी भोपाल बाइपास से गुना नाके तक खाना बांटने में लगे हैं। बिना किसी भेदभाव के लोग गाडिय़ां रुकवाकर उन्हें खाना मुहैया करवा रहे हैं। अपने बच्चों, पत्नी सहित परिजनों के ये मजदूर सूरत, पुणे, मुंबई सहित अन्य शहरों से आकर यूपी के ईटावा, झांसी और ग्वालियर की ओर रवाना हो रहे हैं। दिन और रात इनका कारवां बना हुआ है।
…और हर कदम जोखिम उठाकर ड्यूटी निभा रही पुलिस
अस्पताल में हर कदम पर कोरोना से जंग लड़ रहे स्वास्थ्य अमले के साथ आम लोगों से सीधे संपर्क में रहने वाले पुलिसकर्मी भी जान जोखिम में डालकर अपना ड्यूटी धर्म निभा रहे हैं। इन रोड से गुजरने वाले लोगों खाना और उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था भोपाल बाइपास स्थित देहात थाने की टीम जुटी हुई है। थाना प्रभारी आदित्य सोनी के साथ ही एसआई एल. सी. भाटी, एएसाई बब्बन ठाकुर, शिवचरण यादव, अरुण जाट, संजय सिंह, आशीष दुबे, हेमंत भार्गव, रूपसिंह चौहान, समीर खान सहित अन्य डटे हुए हैं। वे खुद की सेहत की परवाह किए बगैर सेवाभावी तरीके से उनकी मदद में जुटे हैं।
पत्रिका व्यू : जहां थे वहां रुकना क्या इतना कठिन था?
अन्य राज्यों से अपने गंतव्य को जा रहे मजदूरों को न खुद से खुद को खतरा है बल्कि अन्य आम जनता को भी जो इनके संपर्क में आएंगे। जिन गांवों में ये जाएंगे वहां भी यह दिक्कत है। क्या जिन फैक्टरियों में ये कार्यरत थे, जिन कंपनियों में ये थे वहां इनके रुकने के प्रबंध नहीं हो सकते थे? क्या वहां खाना नहीं मिल पाता? क्या वहां के खाली पड़े स्कूल, कॉलेज, धर्मशाला, होटल इनके काम नहीं आ सकती थीं? यदि इस गंभीर मुद्दे पर सरकार और जिम्मेदार ध्यान दे लेते तो परिवार सहित सड़क पर पैदल निकलने वालों की पीड़ा इस कदर जग जाहिर नहीं होती न ही कोरोना को लेकर एक भय पैदा होता।
दिन-रात हमारी टीम लगी है
हमारी टीम दिन रात लगी हुई है, हम कोशिश में हैं कि उन्हें पहले समझाएं, रुकने का प्रबंध करें लेकिन वे पहले अपने घर जाना चाहते हैं। उन्हें खाना, संतरे, पोहा, बिस्किट जैसी सुविधा हो पा रही है हम कर रहे हैं। लगातार हमारी कोशिश जारी है, जो लोग पैदल जा रहे हैं, उनके लिए वाहन की व्यवस्था भी करवा रहे।
-आदित्य सोनी, थाना प्रभारी, देहात, ब्यावरा
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