टिप्पणी : जितेन्द्र पालीवाल @ राजसमंद तकरीबन सवा लाख की आबादी का हमारा शहर तीन-चार किलोमीटर की परिधि में बसा है, लेकिन इस छोटे से दायरे में शहर की स्काई लाइन बिगाडऩे की जो करतूतें हो रही हैं, वह बड़े सवाल खड़े करती है। बधाईहो नगर परिषद को! शहर की सबसे जिम्मेदार संस्था की आंखों के सामने अवैध इमारत निर्माण के अनचाहे कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। पैसा, बाहुबल और राजनैतिक सत्ता तक पहुंच हो तो क्या नहीं किया जा सकता, यह सरेआम शहर देख रहा है।
ज्यादा वक्त नहीं बीता, दो साल पीछे चले जाएं तो तस्वीर साफ नजर आ जाएगी। १०० फीट, ५० फीट, धोइन्दा रोड हो, हाउसिंग बोर्ड या भीलवाड़ा रोड। कोईऐसा कौना नहीं छूटा है, जहां रसूखदारों ने अपने पैर नहीं पसारे हों। सत्ता और भूमाफियाओं-बिल्डरों की सांठगांठ के बीच आम आदमी की बिसात ही क्या है, जो इस गठबंधन का कुछ बिगाड़ सके। कुछ मौकों पर प्रतिपक्ष ने जनता की आवाज को मजबूत करने की कोशिश भले की हो, लेकिन बहुमत के ताकत पर राज कर रही सत्ताधारी पार्टी के लोगों पर लोकतांत्रिक विरोध का असर कम ही दिखा। मोटी चमड़ी के अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं। उनका यह रवैया लालचियों का खूब मददगार बना हुआ है। प्रभावशालियों ने बेखौफ अपने काम किए और करवाए। इन दिनों नगर परिषद के गलियारों में दलालों और कमीशनखोरी का शहद चाटने को आतुर जमात की चहल-पहल से आबाद नजर आता है।
बेशक इस गंगा में सत्ताधारी पार्टी के मौजूदा और पूर्वपदासीन लोग जमकर हाथ धो रहे हैं। हाउसिंग बोर्डमें नियमों को बिल्कुल ताक पर धरकर निर्माणाधीन बहुमंजिला इमारत का मामला हो, राजनगर बस स्टैण्ड के निकट सरकारी जमीन पर कब्जा कर दुकानें बनाने की बात हो या जेके सर्किल रोड पर अनुमति से ज्यादा निर्माण के उदाहरण हो, खुद-ब-खुद साबित हो जाता है कि मनमानी और रसूखदारी किसकी है। इन छुटभैयों के ऊपर हाथ किसका है, इससे भी शहर अनजान नहीं है। ५० फीट रोड और धोइन्दा रोड पर अवैध वाणिज्यिक प्रतिष्ठान कृषि और आबादी भूमि पर स्थापित होना बड़ा सवाल खड़ा करता है। इस खेल में सरकारी को राजस्व की लगी चपत का आंकड़ा बहुत बड़ा बैठता है। कोई गरीब बगैर मंजूरी के अपने घर में शौचालय बना ले, तो परिषद का दस्ता उसे तोड़ आता है, मगर करोड़ों की अवैध इमारतें अधिकारियों को खूब सुहाती है। उनकी इच्छाओं को बल और तब मिल जाता है, जब
जयपुर में बड़े आहदे पर बैठे
अशोक परनामी जैसे लोग हाईकोर्ट के आदेशों से आंख मूंद लेने की दुस्साहसिक बातें करते हैं।
चुनाव के वक्त युवाओं की नई खेप ने ‘शहरी सरकार’ का जो चेहरा गढ़ा था, उसका दीदार करते हुए शहर ने बड़ी उम्मीदें लगाई थीं। अब उन युवा तुर्कों के जुबानी हथियार भ्रष्टाचार की ढाल पर चोट खाकर भोंथरा गए। बोर्ड बैठकों में सत्तापक्ष के पार्षद खुद कई मौकों पर असंतोष जता चुके हैं। एक-दो गुपचुप बैठकें कर चुके हैं, वहीं मंत्री के सामने भी खुलेआम गुस्सा जता चुके हैं, लेकिन मनमानी रुक नहीं रही। अवैध कामों को पूरी तरह प्रश्रय देने के सिलसिले में घड़ा इतना ज्यादा भर चुका है कि अब तो बोर्ड के जिम्मेदारों को साधारण सभा की बैठक बुलाने के नाम से ही डर लगने लगा है। प्रतिपक्ष पूरे हिसाब-किताब के साथ हमले की मुद्रा में है, लेकिन मनमानी इतनी कि नौ महीने में दूसरी बैठक तक नहीं हुई। बोर्ड के इक्का-दुक्का निर्णयों को छोड़ दें, तो विकास की आड़ में अवैध निर्माण, घटिया कामों को खूब बढ़ावा मिला। सत्तापक्ष को देखना होगा कि उसे खोता भरोसा कैसे हासिल करना है, वर्ना विधानसभा चुनाव बहुत ज्यादा दूर नहीं रहे। कम से कम शहर की जनता तो जवाब मांगेगी ही।
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