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बड़ा फैसला: राजस्थान में बंद होगी इस मंदिर की तीन सौ साल पुरानी ये परंपरा, पीठाधीश ने लिया निर्णय

तृतीय पीठ प्रन्यास के श्री द्वारकाधीश मंदिर ( Dwarkadhish Temple ) कांकरोली में लगातार दूसरे वर्ष अन्नकूट ( annakut mahotsav 2019 ) लूट में विवाद होने व प्रसाद का अनादर होने पर पीठाधीश ब्रजेश कुमार ने लूट की परंपरा ही बंद करने का निर्णय लिया है…

राजसमंदOct 30, 2019 / 02:29 pm

dinesh

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राजसमंद। तृतीय पीठ प्रन्यास के श्री द्वारकाधीश मंदिर ( Dwarkadhish Temple ) कांकरोली में लगातार दूसरे वर्ष अन्नकूट ( annakut mahotsav 2019 ) लूट में विवाद होने व प्रसाद का अनादर होने पर पीठाधीश ब्रजेश कुमार ने लूट की परंपरा ही बंद करने का निर्णय लिया है। मंदिर अधिकारी भगवतीलाल पालीवाल ने 300 वर्ष पुरानी अन्नकूट लूट की परंपरा बंद करने का ऐलान कर दिया।
मन्दिर अधिकारी पालीवाल ने बताया, लगातार 2 वर्ष से आदिवासी समाज के कुछ लोग अन्नकूट लूट की पवित्र परंपरा में विघ्न डाल रहे हैं। गत वर्ष प्रसाद को उछाला, इधर उधर फेंका और इस बार तो हद ही कर दी, प्रसाद को नालियों में बहा दिया। सदियों से चावल का ढेर आदिवासी लूटते आए हैं और यही परंपरा ही है। कुछ लोगों ने बेवजह हुड़दंग मचाया, जिसकी वजह से अव्यवस्था फैली। फिर अन्नकूट के प्रसाद का अपमान हुआ, जो निंदनीय है। इससे वैष्णव, गोस्वामी परिवार के साथ समूचे शहरवासी दुखी दिखे। आदिवासी समाज के लोग ही अलग अलग गुटों में विभक्त हो गए, जिसकी वजह से विवाद बढ़ गया। ठाकुरजी के प्रसाद का अनादर करना ठाकुरजी के अपमान करने से भी बड़ा है।
प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक

कांकरोली का द्वारकाधीश मंदिर ( Shree Dwarkadhish Ji Mandir ) कांकरोली गांव में स्थित नाथद्वारा के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह मंदिर कांकरोली मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू देवता श्रीकृष्ण इस खूबसूरत मंदिर के एकमात्र देवता हैं। इनकी लाल पत्थर की मूर्ति पूर्ण भक्ति और समर्पण के साथ मंदिर में पूजी जाती है। बहुत से लोग मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की लाल पत्थर की मूर्ति मथुरा से लाई गई थी। महाराणा राज सिंह ने 1676 में मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर वैष्णव और वल्लभाचार्य संप्रदायों से संबंधित है। उदयपुर शहर से 65 किमी की दूरी पर स्थित, द्वारकाधिश मंदिर राजसमंद झील के तट पर स्थित है।
– मंदिर मंडल वार्ता के बाद भी मुकर गया। सिर्फ पांच तरह के प्रसाद हटाना तय हुआ, जबकि सारा प्रसाद हटा लिया गया, जिसे वापस रखा गया। यह आदिवासी समाज के साथ धोखा है। परंपरा को बंद करना गलत है।
रतनलाल भील, अध्यक्ष, आदिवासी संयुक्त संगठन राजसमंद

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