वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि कुंभलगढ़ में आवास की बनावट, पानी की उपलब्धता, बाघिनों कबे लिए पर्याप्त प्रसवस्थल और लोगों का बाघों के साथ पुराना रिश्ता ऐसे कारक हैं, जो यहां बाघ लाने के लिए सकारात्मक माहौल बनाते हैं। यहां पर्यटकों की कोई कमी नहीं रहेगी। होटल, गाइड, वाहन संचालक, संरक्षणवादी स्वयंसेवी संस्थाएं, छोटे दुकानदार, होमस्टे से जुड़े स्थानीय बाशिन्दे और तमाम लोग इससे लाभान्वित होंगे। कुंभलगढ़ में बाघ लाने से यह मेवाड़ के गौरव में भी बढ़ोतरी करेगा। अमूमन यहां पर्यटक दो दिन ठहरते हैं, जो तीन से चार-दिन तक का हो जाएगा। शैक्षणिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।
प्री-बेस (पूर्वाधार) बाधा को दूर करने के लिए सादड़ी के नजदीक मोडिया वनखण्ड में करीब 211 हैक्टेयर का शाकाहारी वन्यप्राणियों का रिहेबिलिटेशन और रिलोकेशन केन्द्र बनाया जा चुका है। उसमें प्री-बेस बढ़ाने का कार्य प्रगतिरत है। रणकपुर, ठंडीबेरी से कुछ आगे छोटी औदी के पास एवं जवाई में पुराने प्राणी रिहेबिलिटेशन व रिलोकेशन केंद्र बने हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ सुधार कर इनको जंगली सुअर, खरगोश, सांभर, चीतल, चिंकारा आदि का प्रजनन केंद्र बनाकर प्री-बेस बढ़ाने का कार्य किया जा सकता है। वन विभाग के पास बाघ परिचय का करीब 15 वर्ष का तजुर्बा भी है।
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बढ़ती जनसंख्या के जैविक दबाव ने 1960 से 1970 के बीच बाघों को मेवाड़ से लगभग समाप्त कर दिया था। यह जीवित विरासत हमसे छिन गई। हालांकि बाघ समाप्त हो गए, लेकिन अच्छा वन क्षेत्र बचा रह गया। उनमें टॉडगढ़-रावली, भैंसरोडग़ढ़, बस्सी, जयसमंद, सीतामाता, सज्जनगढ़, फुलवारी की नाल, कुंभलगढ़ अभयारण्य क्षेत्र बने। यदि बाघ की वापसी होती है तो संपूर्ण मूल परिस्थितिकी तंत्र की वापसी होगी एवं यह एक बड़ा कार्य होगा। राज्य सरकार को इसमें तेजी दिखानी होगी।
राहुल भटनागर, सदस्य, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
आलोक कुमार गुप्ता, उपवन संरक्षक (वन्यजीव), राजसमंद