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रतलाम

बच्चों को न बनने दें नखराले पिकी ईटर

बच्चों को न बनने दें नखराले पिकी ईटर

रतलामMay 28, 2018 / 10:33 am

Ashish Pathak

Picky Eater Baby Foods

Baby Foods In HIndi News

रतलाम। गर्मी के समय में घर में बड़ी समस्या तो क्या बनाएं की रहती है। एेसे में बच्चों के पसंदीदा भोजन में घर की सब्जियों के बस कुछ नाम रहते है। अनेक महिलाओं की ये शिकायत रहती है कि उनके बच्चे पोष्टिक आहार नहीं लेते है। एेसे में कुछ सरल बात को अपनाएं तो आपके बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य व पोषण की नीव मजबूत हो सकती है। ये बात आयुर्वेद विशेषज्ञ नाजिया नईम ने कही। नईम ने बताया कि सबसे जरूरी तो ये है कि हम समस्या कि जड़ पर नहीं जाते, इसके बगैर कोई बात करना व्यर्थ रहता है। बेहतर ये है कि बच्चों को नखराले पिकी ईटर न बनने दें।
Picky Eater Baby Foods
जरूरी है नए स्वाद से दोस्ती कराना

क्या भोजन व स्वाद से दोस्ती हो सकती है। इस बात पर नईम ने बेहतर बात बताई है। इनके अनुसार जब बच्चा 6 माह से लेकर 24 माह तक का हो, तब ही ये बेहतर समय रहता है जब आप अपने बच्चों को नए-नए स्वाद से दोस्ती करा सकते है। जितने नए स्वाद के संपर्क में बच्चा आएगा, भविष्य में भोजन के मामले में नखरे उतने कम होंगे। एेसे में अधिक मेहनत तब करना होती है, जब बच्चा बड़ा हो जाए। इसलिए ये जरूरी है कि छोटी उम्र में ही बच्चों को बेहतर तरीके से नए-नए स्वाद की आदत डाली जाए।
स्वाद पर रखे जरूरी ध्यान

नईम ने कहा कि मनुष्य के स्वाद कलिकाएं बढ़ती उम्र के साथ कम होने लगती है। एेसे में ये बिल्कुल जरूरी नहीं है कि जो स्वाद हमको बेहतर लगे, वो बच्चों को भी लगे। बच्चों को मीठा, कड़वा, तीखा हर स्वाद से दोस्ती करवाएं। शुरुआत में बच्चा हर प्रकार के स्वाद को ग्रहण करता है। इसलिए भोजन की गंध व स्वाद को बेहतर बनाने में विशेष ध्यान दें।
ना, मतलब हर बार ना नहीं

कई बार घरों में बच्चों के मुंह से किसी सब्जी को लेकर ना निकलता है। उनको उसका स्वाद पसंद नहीं आता। इसका मतलब ये कतई जरूरी नहीं है कि एक बार की ना का मतलब हर बार की ना हो। अगर घर में बच्चों को कोई सब्जी पसंद न आई है तो उससे तौबा करने के बजाए, उसके स्वाद में परिवर्तन करके देखें। ये बा-बार करते रहे। कुछ समय बाद बच्चा उस सब्जी को पसंद करने लगेगा, जो पहली बार ना कहा गया।
इससे होता है पेटदर्द

कई बार घरों में जबरन बच्चों को भोजन कराया जाता है। एेसी गल्ती जरा भी न करें। भूख न होने पर जबर्दस्ती भोजन न कराएं। एेसा करने से न सिर्फ शरीर बीमार होता है, बल्कि मन भी बीमार हो जाता है। एेसे में बच्चों को उल्टी, दस्त, पेटदर्द, भूख न लगना सहित अन्य बीमारी होने लगती है। भोजन के लिए कभी भी बच्चों के साथ मारपीट न करें। जब भूख लगी हो तब ही भोजन दें। जहां तक हो सके, भोजन के दो से तीन घंटे पूर्व जूस, फल, दूध आदि जरूर दे।
घर में बाहर का खाना

अनेक घरों में ये शिकायत रहती हैं कि बच्चा बाहर का तो सब चटपटा खा लेता है, लेकिन घर में कुछ नहीं खाता। एेसे में ये जरूरी है कि जो बाहर पसंद आ रहा है, उसको वो घर में बनाकर दे। इससे लाभ ये होगा की घर में सेहत वाला व गुणवत्ता के साथ पोष्टिक आहार मिलेगा।
लालच देकर न खिलाएं

अनेक घर में बच्चों को भोजन के मामले में लालच दिया जाता है। टीवी, आईसक्रीम आदि का। इसके बजाए बच्चों को साथ खेलने का ऑफर दें। भोजन किया तो साथ खेलेंगे। बच्चों को सबसे अधिक खुशी परिवार के साथ आती है। बच्चों को समय देंगे तो वे और बेहतर खा पाएंगे। इसके अलावा बच्चों को अलग से भोजन न कराएं, बल्कि परिवार साथ बैठकर खाए। इससे लाभ ये होगा कि बच्चे में साथ बैठकर भोजन करने की संस्कृति बढेग़ी।

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