खास यह है कि वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट और भारत सरकार के समन्वय से प्रदेश में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। राजगढ़, सतना व सीहोर को संवेदनशील मानकर इनके 360 गांवों को क्लाइमेट स्मार्ट गांव विकसित करने की योजना है। वर्ष 2019 से यह परियोजना जारी है, लेकिन नतीजे नहीं दिख रहे। बता दें, देश में जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाला पहला ज्ञान प्रबंधन केन्द्र भी मध्यप्रदेश में ही है।
इस साल यह संकट झेला (11 जून से अब तक)
● प्राकृतिक आपदाओं के 1011 मामले आए। प्रदेश में 42056 लोग प्रभावित हुए। सैकड़ों मवेशियों की मौत हुई।
● 36 जगह आकाशीय बिजली गिरने से 116 लोग प्रभावित हुए। 37 स्थानों पर बाढ़ के हालात बने।
डॉ. खुशहाल सिंह राजपुरोहित, पर्यावरण विशेषज्ञ का कहना है कि मध्यप्रदेश में जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। गेहूं व अन्य फसलों के उत्पादन में 10 से 15% की कमी आई है। करीब 3000 साल से चल रहा प्रचलित पंचांग बदल गया है। पतझड़, सर्दी, गर्मी, बारिश का मौसम अब निश्चित नहीं रहा। प्रदेश में तेजी से 170 फीसदी भूजल निकाल लिया गया है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के खतरों से मुंह मोड़ना बड़ा खतरा बन जाएगा।
भविष्य की आफत भी कम नहीं
प्रदेश में बारिश का पैटर्न बदने से किसान हर माह आशंकित रहते हैं। चिंता यह है कि अब बाढ़ से हर साल औसत 36 जिले प्रभावित होने लगे हैं। ओलावृष्टि का पहले तीन-चार साल का चक्र था। अब ये अमूमन हर साल होती है। 28 जिले भूकंप संवेदी श्रेणी में हैं। हाल के दिनों में नर्मदा कछार के जिलों में भूकंप के कई बार झटके महसूस किए गए हैं।