यह बात तीन दिवसीय प्रवास पर रतलाम आए पुष्पगिरी प्रणेता आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज के शिष्य अन्तर्मना मुनि प्रसन्नसागर महाराज ने अपने आशीर्वचन में कही। अक्षय तृतीया के दिन का अपना एक अलग ही धार्मिक व सामाजिक महत्व है। उन्होंने संत की महिमा एक सुन्दर कहानी के माध्यम से मुनिभक्तों को भिखारी और भिक्षुक में अन्तर भी समझाते हुए कहां कि संत भिक्षुक के रुप में आपके यहां आकर आपका तिरस्कार सहन करने के बाद भी आपकों आर्शीवाद देता है और भिखारी आपसे भीख लेकर आपको ये संदेश दे जाता है कि पुण्य कर्मो का रास्ता अपनाओं वरना मेरी तरह भीख मांगते नजर आओगे।
मुनिश्री ने बताया कि अक्षय तृतीया अखंड, अनंत, अक्षय फल देने वाली है। अक्षय तृतीया पर्व भारतीय संस्कृति की पहचान है। इस दिन किया गया कार्य अक्षय और अंनत फल देने वाला होता है। यही पर्व हमें दान का महत्व भी बताता है, दान के इस महत्व को समझे और घर आए संत और अतिथि का जल-पान और भोजन से सत्कार करे, जो अतिथि और संत को खिलाकर खाता है उसका जीवन हमेशा खिलखिलाता रहता है। यह विचार तपस्वी अन्तर्मना प्रसन्नसागर महाराज ने मंगलवार को अक्षय तृतीया का महत्व बताते हुए व्यक्त किया।