आदिवासियों की जमीन में भी कमी
कृषि जनगणना ने एक अन्य गंभीर पहलू यह सामने रखा है कि इस दशक में आदिवासियों की खेती की जमीन में भी काफी कमी आ गई है। वर्ष 2010-11 की तुलना में 2021-22 में इनकी खेती का क्षेत्रफल 2.86 फीसदी घट गया है। इसी तरह अनुसूचित जाति वर्ग की खेती के रकबे में भी 7.06 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
कुल रकबा बढ़ा
जहां व्यक्तिगत, आदिवासी और अनुसूचित जाति की खेती में नकारात्मक तस्वीर नजर आई है, वहीं प्रदेश के कुल रकबे के हिसाब से कृषि जनगणना सुखद संदेश लाई है। यह संदेश इस रूप में है कि प्रदेश के खेती के रकबे में वर्ष 2010-11 की तुलना में 6.78 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। यह इस दृष्टि से और उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना में खेती के रकबे में 2010-11 की तुलना में 1.05 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। लेकिन पांच साल में यह रकबा 1.69 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो 2010-11 के आंकड़े 1.58 करोड़ हैक्टेयर से 10.74 लाख हैक्टेयर ज्यादा है।
कृषि में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
महिलाओं का खेती के प्रति रुझान काफी बढ़ा है। उनके खेतों की संख्या में 170.25 फीसदी का इजाफा हुआ है, वहीं इनके खेती के क्षेत्रफल में भी 113.25 फीसदी का इजाफा हुआ है। वर्ष 2010-11 में जहां महिलाएं 12.04 लाख हैक्टेयर रकबे पर खेती कर रही थी, वहीं 2021-22 में यह रकबा बढ़ कर 25.67 लाख हैक्टेयर हो गया है। पहले महिलाओं के पास खेतों की संख्या 8.54 लाख थी जो अब 23.09 लाख हो गई है। महिलाओं के उलट पुरुषों की खेती का रकबा दस साल में 4.26 फीसदी घटा है।
किसान सम्मान निधि बड़ी वजह
कृषि विशेषज्ञ जानकी प्रसाद तिवारी का कहना है कि खेत छोटे होने की बड़ी वजह किसान सम्मान निधि है, जो हर किसान को 12 हजार रुपए सालाना मिलती है। यह किसान निधि प्राप्त करने के लिए खेतों का परिवार में विभाजन बढ़ा है। हर हिस्से का मालिक किसान सम्मान निधि के लिए पात्र हो गया हैै। इसलिए खेत के रकबे में कमी आई है। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि रकबे में ज्यादातर गिरावट वर्ष 2015-16 के बाद आई है। किसानों को सम्मान निधि इसके बाद ही मिलने लगी है। वर्ष् 2010-11 की तुलना में 2015-16 में खेती के रकबे में गिरावट 0.11 फीसदी की थी, जो नगण्य है। लेकिन, लेकिन 2021-22 आते-आते यह गिरावट 10.54 फीसदी पर पहुंच गई। यह साबित कर रहा है कि लोगों ने लाभ के लिए खेतों का बंटवारा किया। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। खेतों के जो खसरे वर्ष 2010-11 में 8.29 लाख थे, वे दस साल में बढ़़कर 10.47 लाख हो गए। खेतों के खसरों में यह बढ़ोत्तरी 26.35 फीसदी है।