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रतलाम

वर्ष में एक बार इस व्रत को करने से बाबा महादेव करते हर इच्छा पूरी, मिलता मनचाहा प्यार, होती पति की उम्र लंबी

वर्ष में एक बार इस व्रत को करने से बाबा महादेव करते हर इच्छा पूरी, मिलता मनचाहा प्यार, होती पति की उम्र लंबी

रतलामSep 09, 2018 / 01:41 pm

Ashish Pathak

hartalika teej vrat 2018 - hartalika teej vrat ka mahatava

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रतलाम। सनातन धर्म में बाबा महादेव व महादेवी के अटूट प्रेम को आधार बनाकर अनेक व्रत व त्यौहार का उल्लेख है। बाबा महादेव के बारे में ये सत्य सनातन रुप से कहा गया है कि उनकी पूजन करने से अखंड सौभाग्य से लेकर लड़कियों व लड़कों को मनचाहा प्रेम मिलता है। सभी सुहागिनों को अटल व अखंड सुहाग का वरदान मिलता है। इस बार ये विशेष व्रत जो वर्ष में एक बार होता है, हरतालिका तीज पर्व 12 सितंबर को आ रहा है। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी वीरेंद्र रावल ने कही। वे सुहागिनों को हरतालिका तीज का महत्व बता रहे थे।
ज्योतिषी रावल ने बताया कि बाबा महादेव को महादेवी पार्वती ने कठोर व्रत करके पाया था। ये सभी को पता है कि मां पार्वती ने महादेव को पति के रुप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हरतालिका तीज को बड़ी तीज के रुप में इसलिए ही सुहागिने मनाती है। इस शुभ मुहूर्त में इस व्रत में भगवान महादेव व महादेवी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन की परेशानी तो दूर होती है साथ ही वें जिनको विवाह में परेशानी आ रही हो उनको महादेव स्वरुप का भोला व सुंदर मन का पति मिलता है।
ज्योतिषी रावल ने बताया कि बाबा महादेव को महादेवी पार्वती ने कठोर व्रत करके पाया था। ये सभी को पता है कि मां पार्वती ने महादेव को पति के रुप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हरतालिका तीज को बड़ी तीज के रुप में इसलिए ही सुहागिने मनाती है। इस शुभ मुहूर्त में इस व्रत में भगवान महादेव व महादेवी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन की परेशानी तो दूर होती है साथ ही वें जिनको विवाह में परेशानी आ रही हो उनको महादेव स्वरुप का भोला व सुंदर मन का पति मिलता है।
पूरी रात होती है मां व महादेव की पूजा

हरतालिका तीज इस बार 12 सितंबर को आ रही है। इस दिन सुबह से व्रत रखा जाता है। शाम को चंद्र उदय के बाद पहली पूजा होती है। पहली पूजा मां व पार्वती का आह्वान करके पंचमेवा, हल्दीख् मेहंदी, दूध, पंचामृत आदि चढ़ाया जाता है। इसके बाद दीपक से आरती आदि करके पहले चरण की पूजा होती है। इसके बाद व्रत का पहला चरण पूरा होता है व प्रसादी आदि ली जाती है। मां पार्वती को इस व्रत में साबुदाने की खीर विशेष रुप से चढ़ाई जाती है। उसी को प्रसादी के रुप में लिया जाता है।
पूरी रात होता है जागरण

पहले चरण की पूजा के बाद सुहागिने व लड़कियां व्रत को खोलती है। इसके बाद उपवास में खाने योग्य केले, साबुदाने की खीर आदि का सेवन करती है। इस सेवन के बाद दूसरे चरण की पूजा होती है। दूसरे चरण की पूजा के बाद से लेकर पांचवी व अंतिम चरण की पूजा के दौरान घी व तेल के दिपक को अखंड रखा जाता है। इसके बाद सुबह पूरी पूजन सामग्री को तालाब या नदी में विसर्जन किया जाता है। इसके बाद ही पूजा सामाप्त होती है। रात में भजन आदि होते है।

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