आज से दिव्य सत्संग प्रवचन शृंखला
दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के सचिव प्रवक्ता मांगीलाल जैन ने बताया कि मुनिश्री के सान्निध्य में दिव्य सत्संग प्रवचन शृंखला का आयोजन 21 से 28 अक्टूबर तक होने जा रहा है। इसमें लोकेंद्र भवन पर प्रतिदिन 8 से 9 बजे तक प्रवचन अलग-अलग विषय पर होंगे, जिसमें प्रथम दिन मां ममता का कलश, 23 संबंध पिता पुत्र के,24 को दाम्पत्य की धुरि आपसी समझ, 25 को भाई हो कैसा राम भरत जैसा, 26 अक्टूबर को बुढ़ापा बोझ या वरदान, 27 अक्टूबर को परिवार की खुशियों का राज एवं 28 को मातृ-पितृ वंदन महोत्सव का आयोजन दोपहर से 2 शाम 5 बजे तक होगा। जिसमें जिनचंद्रसागर एवं हेमचंद्र सागर बंधु बेलड़ी महाराज के प्रवचन का लाभ भक्तों को मिलेगा।
दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के सचिव प्रवक्ता मांगीलाल जैन ने बताया कि मुनिश्री के सान्निध्य में दिव्य सत्संग प्रवचन शृंखला का आयोजन 21 से 28 अक्टूबर तक होने जा रहा है। इसमें लोकेंद्र भवन पर प्रतिदिन 8 से 9 बजे तक प्रवचन अलग-अलग विषय पर होंगे, जिसमें प्रथम दिन मां ममता का कलश, 23 संबंध पिता पुत्र के,24 को दाम्पत्य की धुरि आपसी समझ, 25 को भाई हो कैसा राम भरत जैसा, 26 अक्टूबर को बुढ़ापा बोझ या वरदान, 27 अक्टूबर को परिवार की खुशियों का राज एवं 28 को मातृ-पितृ वंदन महोत्सव का आयोजन दोपहर से 2 शाम 5 बजे तक होगा। जिसमें जिनचंद्रसागर एवं हेमचंद्र सागर बंधु बेलड़ी महाराज के प्रवचन का लाभ भक्तों को मिलेगा।
श्रद्धा और वंदन वहीं होता है, जहां गुणों की अधिकता होती
श्रद्धा और वंदन वहीं होता है, जहां गुणों की अधिकता होती है। साधु-संतों को वंदन इसलिए किया जाता है कि वे आत्म कल्याण का मार्ग दिखाने वाले होते है। जीवन में बदलाव उन्हीं के सानिध्य से आता है। साधु के दर्शन ही नहीं स्मरण से भी कर्मों की निर्झरा होती है। यह बात दीक्षा दानेश्वरी आचार्यश्री रामेश ने कही। समता कुंज में अमृत देशना के दौरान उन्होंने साधु की संगत के कई लाभ बताए और कहा कि जैसी संगत होती है, वैसी ही रंगत रहती है। आदित्यमुनि, पंथकमुनि ने भी संबोधित किया। संचालन सुशील गौरेचा एवं महेश नाहटा ने किया।
आचार्यश्री के मुखारविंद से 22 अक्टूबर को सोमेश्वर की मुमुक्षु निर्मला दुग्गढ़ एवं रूपाली सोलंकी जैन भागवती दीक्षा ग्रहण करेगी। उनका दो दिवसीय दीक्षा महोत्सव 21 अक्टूबर को आरंभ होगा। रविवार सुबह 7.45 बजे घांस बाजार स्थित समता अतिथि भवन से वरघोड़ा निकाला जाएगा। इसमें दीक्षार्थी के साथ बाल मुमुक्षु नीरज मालू, समता मालू तथा करिश्मा कोटडिय़ा भी शामिल होंगी। चातुर्मास संयोजक महेंद्र गादिया ने बताया कि वरघोड़ा समता कुंज पहुंचकर व्याख्यान में परिवर्तित होगा। श्री संघ द्वारा दोपहर 1.30 बजे गोपाल नगर के सांस्कृतिक मंच पर सभी मुमुक्षुगण एवं उनके परिजनों का अभिनंदन किया जाएगा।
श्रद्धा और वंदन वहीं होता है, जहां गुणों की अधिकता होती है। साधु-संतों को वंदन इसलिए किया जाता है कि वे आत्म कल्याण का मार्ग दिखाने वाले होते है। जीवन में बदलाव उन्हीं के सानिध्य से आता है। साधु के दर्शन ही नहीं स्मरण से भी कर्मों की निर्झरा होती है। यह बात दीक्षा दानेश्वरी आचार्यश्री रामेश ने कही। समता कुंज में अमृत देशना के दौरान उन्होंने साधु की संगत के कई लाभ बताए और कहा कि जैसी संगत होती है, वैसी ही रंगत रहती है। आदित्यमुनि, पंथकमुनि ने भी संबोधित किया। संचालन सुशील गौरेचा एवं महेश नाहटा ने किया।
आचार्यश्री के मुखारविंद से 22 अक्टूबर को सोमेश्वर की मुमुक्षु निर्मला दुग्गढ़ एवं रूपाली सोलंकी जैन भागवती दीक्षा ग्रहण करेगी। उनका दो दिवसीय दीक्षा महोत्सव 21 अक्टूबर को आरंभ होगा। रविवार सुबह 7.45 बजे घांस बाजार स्थित समता अतिथि भवन से वरघोड़ा निकाला जाएगा। इसमें दीक्षार्थी के साथ बाल मुमुक्षु नीरज मालू, समता मालू तथा करिश्मा कोटडिय़ा भी शामिल होंगी। चातुर्मास संयोजक महेंद्र गादिया ने बताया कि वरघोड़ा समता कुंज पहुंचकर व्याख्यान में परिवर्तित होगा। श्री संघ द्वारा दोपहर 1.30 बजे गोपाल नगर के सांस्कृतिक मंच पर सभी मुमुक्षुगण एवं उनके परिजनों का अभिनंदन किया जाएगा।
समता संस्कार शिविर में 250 बच्चों ने दिखाया संस्कारों के प्रति उत्साह
आचार्यश्री की प्रेरणा से संस्कारों के प्रति बच्चों में उत्साह है। संयम साधना महोत्सव के दौरान जैन स्कूल में आयोजित समता संस्कार शिविर में शामिल बच्चों की उपस्थिति यही दर्शा रही है। शनिवार को शासन प्रभावक धर्मेशमुनि ने बच्चों को माता-पिता और गुरुजनों की हर आज्ञा का पालन करने की सीख दी। प्रशममुनि, महासती विनयश्री, प्रांजलश्री, सुरिधिश्री, शारदाश्री एवं सुप्रतिभाश्री ने मार्गदर्शन दिया। शिविर संयोजक दीपिका चंडालिया ने बताया कि शिविर में शहर के विभिन्न स्थानों से 250 से अधिक बच्चें शामिल हुए।
आचार्यश्री की प्रेरणा से संस्कारों के प्रति बच्चों में उत्साह है। संयम साधना महोत्सव के दौरान जैन स्कूल में आयोजित समता संस्कार शिविर में शामिल बच्चों की उपस्थिति यही दर्शा रही है। शनिवार को शासन प्रभावक धर्मेशमुनि ने बच्चों को माता-पिता और गुरुजनों की हर आज्ञा का पालन करने की सीख दी। प्रशममुनि, महासती विनयश्री, प्रांजलश्री, सुरिधिश्री, शारदाश्री एवं सुप्रतिभाश्री ने मार्गदर्शन दिया। शिविर संयोजक दीपिका चंडालिया ने बताया कि शिविर में शहर के विभिन्न स्थानों से 250 से अधिक बच्चें शामिल हुए।
47 दिनी उपधान तप की शुरुआत आज से, 100 तपस्वी भाग लेंगे
जयंतसेन धाम तक तपस्वी स्वागत यात्रा के बाद होगा तप में मंगल प्रवेश
रतलाम। आचार्यश्री जिनचन्द्रसागर सूरिश्वर महाराज की निश्रा में आज से 47 दिनी उपधान तप की शुरुआत जयंतसेन धाम सागोद रोड पर होगी। देशभर से आए करीब 100 तपस्वी इसका लाभ लेंगे। जिनमें अयोध्यापुरम गुरुकुल के 12 बाल तपस्वी भी शामिल है। धर्म जागरण चातुर्मास के 90वें दिन आचार्यश्री ने उपधान तप का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि 47 दिन तक 12 से लेकर 82 साल के सभी तपस्वी जैन साधु की तरह जीवन व्यतीत करेंगे। बिना इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक साधनों के बिना तपस्वी जीवन जीया जाएगा।
सभी तपस्वी तप साधना के साथ ध्यानए प्रतिक्रमण, गुरुवन्दन, नवकार महामंत्र जाप सहित अन्य साधना कर आध्यात्मिक जीवन जीने की कला सीखेंगे। तपस्वी एक दिन छोडकर एक बार ही सादा सात्विक भोजन करेंगे। इस अवसर पर नीमच की तपस्वी बहन को दीक्षा मुहूर्त भी प्रदान किया जाएगा। वही आगमोउद्धारक वाटिका पर प्रतिदिन सुबह 9.30 से 10.30 बजे जतक नियमित प्रवचन होंगे। गणिवर्यश्री विरागचन्द्रसागर और पदमचन्द्रसागर महाराज ने नवपद ओलीजी आराधना के पांचवें दिन कहा की संसार एक व्याधि, अग्नि और समुद्र है, इससे छुटने के लिए जिन शासन की आराधना है। संसार के सब रोगों का इलाज नवपद जी में है।
जयंतसेन धाम तक तपस्वी स्वागत यात्रा के बाद होगा तप में मंगल प्रवेश
रतलाम। आचार्यश्री जिनचन्द्रसागर सूरिश्वर महाराज की निश्रा में आज से 47 दिनी उपधान तप की शुरुआत जयंतसेन धाम सागोद रोड पर होगी। देशभर से आए करीब 100 तपस्वी इसका लाभ लेंगे। जिनमें अयोध्यापुरम गुरुकुल के 12 बाल तपस्वी भी शामिल है। धर्म जागरण चातुर्मास के 90वें दिन आचार्यश्री ने उपधान तप का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि 47 दिन तक 12 से लेकर 82 साल के सभी तपस्वी जैन साधु की तरह जीवन व्यतीत करेंगे। बिना इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक साधनों के बिना तपस्वी जीवन जीया जाएगा।
सभी तपस्वी तप साधना के साथ ध्यानए प्रतिक्रमण, गुरुवन्दन, नवकार महामंत्र जाप सहित अन्य साधना कर आध्यात्मिक जीवन जीने की कला सीखेंगे। तपस्वी एक दिन छोडकर एक बार ही सादा सात्विक भोजन करेंगे। इस अवसर पर नीमच की तपस्वी बहन को दीक्षा मुहूर्त भी प्रदान किया जाएगा। वही आगमोउद्धारक वाटिका पर प्रतिदिन सुबह 9.30 से 10.30 बजे जतक नियमित प्रवचन होंगे। गणिवर्यश्री विरागचन्द्रसागर और पदमचन्द्रसागर महाराज ने नवपद ओलीजी आराधना के पांचवें दिन कहा की संसार एक व्याधि, अग्नि और समुद्र है, इससे छुटने के लिए जिन शासन की आराधना है। संसार के सब रोगों का इलाज नवपद जी में है।